सांझ हो गई थी। पंछी पंख फैलाये तेजी से अपने-अपेन घोंसलों की ओर लौट रहे थे। जंगली पशु दिन भर शिकार की तलाश में भटकने के बाद किसी जलाश्य में पानी पीकर लौटने लगे। लेकिन सेमल के गाछ के नीचे खड़ी एक हिरनी न हिली, न डुली। उसके चेहरे पर उदासी का भाव था। गुमसुम होकर वह डूबते हुए सूरज की लाली को देख रही थी। सेमल के गाछ पर बिखरने वाली लाली से फूल और भी लाल हो रहे थे।
हिरनी को उदास देखकर हिरन उसके पास आया। अपनी बड़ी-बड़ी आंखों से उसे देखकर बाला, “क्यों, आज तुम्हें क्या हो गया है ? मैं देख रहा हमं कि तुम आज सवेरे से ही इस गाछ के नीचे गुमसुम खड़ी हो ?”
हिरनी चुप रही। कुछ नहीं बाली। उसकी सागर-सी गहरी आंखों में आज सूनापन था। हिरन की बात सुनते ही उस सूनेपन को आंसुओं की बूंदों ने भर दिया। पिुर वे आंसू ढुलक पड़े। हिरन विचलित हो उठा। अपनी प्रियतमा की आंखों में आंसू उसने आज पहली बार देखे थे। न जाने किस आशंका से उसका ह्रदय कांप उठा। उसने देखा, हिरनी फटी हुई आंखों से अब भी देख रही है। उसकी सांस की गति बढ़ गई है। उसके पैर कांप रहे हैं।
हिरन ने स्पर्श से अपनी हिरनी को दुलारा। फिर पूछा, “क्या हो गया है तुम्हें? क्या तुम्हारी चारागाह सूख गया है। या किसी जंगली जानवर का डर है?
बोलो, तुम्हारी उदासी और तुम्हारा मौर मेरे दिल को चीरे डालरहा है।”
हिरनी के होठों में थोड़ा-सा कम्पन हुआ।
फिर वह साहस बटोरकर बोली, “सुना है, इस देश के राजा के याहां राजकुमारी का जन्म-दिन मनाया जानेवाला है। बड़े-बड़े राजाओं को निमंत्रण भेजे गये हैं। कल बड़ा भारी उत्सव होगा। और....और......इस अवसर पर तरह-तरह के पकवानबनेंगे........जिसके लिए तुम्हारा..............
वह बात पूरी किये बिना बिलख उठी। आंखों से आंसुओं की धार बहने लगी। चारों ओर अंधेरा छा गया। बेचारा हिरन क्या कहे !
एक क्षण तक वह मौन रहा। फिर धीरज के साथ उसने कहा, “अरी पगली, इतनी-सी छोटी बात के लिए तू दु:खी होती है ! ऐसे अच्छे अवसर पर अगर मूझे बलिदान होना पड़ा तो यह मेरा कितना बड़ा सौभाग्य होगा ! राजा के जंगल में रहने वाले हम सब उन्हीं के तो सेवक हैं। इस बहानेमैं उनके ऋण के बोझ से छूट जाऊंगा। मुझे स्वर्ग मिलेगा। अखिर एक दिन मरना तो है ही ! किसी शिकारी के तीर से मरने की बजाय राजा के बेटे के लिए बलिदान होना कहीं अच्छा है।”
हिरनी फफक-फफक कर रो पड़ी। रोते-रोते बोली, “मेरे प्राणनाथ, मेरी दुनिया सूनी मत करो। तुम्हारे बिना कैसे जीऊंगी? मैंने तुम्हें अपनी आंखों से कभी ओझल नहीं होने दिया। मेरे लिए....बस मेरे लिए....ऐसा मत करा।”
“तू बड़ी रासमझ हैं !” हिरन ने प्यार से फिर समझाना चाहा।
“ठीक है, मैं नासमझ हूं।” हिरनी नेकहा, “लेकिन अपने प्राणों से बढ़कर प्यारे देवता को मैं कहीं नहीं जाने दूंगी। एक बार, बस एक बार, मेरी बात मान लो। हम इसीसमय इस राज्य को छोड़कर किसी दूसरे जंगल में भाग चलें। इतनी दूर चलें....कि जहां और कोई न हो....।”
हिरनी सारी रात इससे विनय करती रही, लेकिन हिरन नहीं माना। एक ओर प्यार था, दूसरी ओर कर्तव्य, उनके बीच उसे फैसला करना था। उसकी निगाह में कर्तव्य का महत्व अधिक था, तभी तो वह अपने प्यार की बलि चढ़ा रहा था।
दोनों एक-दूसरे का सहारा लिए, सेमलकी छाया में, बैठे रहे। आंखें बंद थी। सन्नाटा इतना छाया था कि दिल की धड़कनें साफ सुनाई देती थीं।
सूखे पत्तों की खड़खड़ाहट से अचानक जंगल जाग उठा। दोनों ने चौंककर देखा। पूरब में सूरज की लाली मुस्करा रही थी और दो बधिक नगी तलवारें लिये खड़े थे।
घबराकर हिरनी ने आंखें बंद कर लीं। उसके ह्रदय की धड़कन बढ़ गयी। मारे पीड़ा के वह छटपटा उठी। जब उसने आंखें खोलकर देखा तो न वहां बधिक थे और न उसका प्राणों से प्यारा हिरन।
तभी आसमान में लाली ओर अधिक व्याप्त हो गयी। उसे लगा, जैसे उसके हिरन का लहू बहकर चारों तरफ फैल गया हो।
हिरनी के दिल बड़ा धक्का लगा। वह बेसुध हो गयी। दिन-भर अचेत पड़ी रही। शाम को उसकी चेतना पल-भर के लिए लौटी। तब न लालिमा थी, न रोशनी। चारों तरफ भयानक सूनापन और अंधेरा छाया था।
हिरनी ने किसी तरह साहस जुटाया। वह उठी और भारी पैरों से राजमहल की ओर चल दी। चलते-चलते वह महल में पहुंची। तबतक राजमहल में जन्म-महोत्सव समाप्त हो चुका था। महारानी अपने छोटे राजकुमार को गोद में लिये बैठी थी। हिरनी ने उन्हें सिर झुकाकर प्रणाम किया और कातर स्वर में विनती की, “महारानी जी ! मैं आपके राज्य कीएक अभागिनी हिरनी हूं। आज के महोत्सव में मेरे प्राणाथ का वध किया गया है। उससे आपकी रसोई की शोभा बढ़ी, मेहमानों का आदर-सत्कार हुआ, यह सब ठीक है; किंतु मेरा तो सुहाग ही लुट गया। अब मेरा कोई नहीं रहा। मैं अनाथ हो गई....।”
उसकी आंखों से आंसू बहने लगे, पर धीरज धर कर वह फिर बाली, “महारानीजी! अब एक मेरी आपसे विनती है। आप कृपा कर मेरे हिरनकी खाल मुझे दे दें। मैंने उसे अपनी आंखों से कभी ओझल नहीं होने दिया। उस खाल को मैं उस सेमल के गाछ पर टांग दूंगी और दूर से देख-देखकर समझ लिया करूंगी कि मेरा हिरन मरा नहीं, जीवित है। महारानीजी ! वह मेरे सुहाग की निशानी है।”
लेकिन महारानी ने हिरनी की प्रार्थना स्वीकार नहीं की। उन्होंने कहा, “उस खाल की तो मैं खंजड़ी बनवाऊंगी और उसे बजा-बजाकर मेरा बेटा खेला करेगा।”
हिरनी का ह्रदय टूक-टूक हो गया। उसकी आशा की धुंधली ज्योति हवा के एक झोंके से बुझ गयी। निराश और भारी मन से वह जंगल को पुन: लौट आयी।
उसके बाद जब भी राजमहल में खंजड़ी खनकती तो हिरनी एक क्षण के लिए बेसुध हो जाती है। वह उस खनक को सुन-सुनकर घंटों आंसू बहाती रहती है। □
The Lodge Goat, Goat Rides, Butts and Goat Hairs, Gathered From the Lodge
Rooms of Every Fraternal Order (Pettibone)
-
The Lodge Goat, Goat Rides, Butts and Goat Hairs, Gathered From the Lodge
Rooms of Every Fraternal Order: More than a Thousand Anecdotes, Incidents
and Ill...
1 week ago
No comments:
Post a Comment