सरैसा के नरहन मोखा जनपद में एक व्यापारी रहता था। उसे जुआ खेलने की लत थी। एक बार वह जुए में अपनी सारी सम्पत्ति हार गया। इससे उसे इतना दु:ख हुआ कि एक दिन वह मर गया। उसकी पत्नी गर्भवती थी। कुछ दिनों बाद उसने एक लड़के को जन्म दिया। उन दिनों उसके घर में बेहद तंगी थी।
व्यापारी की पत्नी ने अपने इकलौते बेटे को जैस-तैसे पाला। जब लड़का पांच साल का हुआ तो वह अपने पुत्र के साथ पति के एक धनिक मित्र कीशरण में चली गयी। वहां वह बारह वर्ष तक रही। एकदिन अवसरपाकर लड़के की मां ने पति के मित्र से प्रार्थना की कि सेठजी, मेरे पुत्र को कुछ पढ़ा-लिख देते तो वह अपने पांवों पर खड़ा हो जाता। लड़के की मां क प्रार्थना पर सेठ ने एक अध्यापक रख दिया। उसने उसे कुछ पढ़ना-लिखना और हिसाब-किताब सिखा दिया।
एक दिन की बात है कि वह लड़का सेठ के दरवाजे पर बैठा चुपचाप कुछ सोच रहा था। आगे क्या होगा, इस चिंता में उसकी आंखें गीली हो गईं। उसी समय उसकी मां भी वहां आ गई। मां ने आंचल से बेटे का मुंह पोंछते हुए कहा, “बेटा, तुम रोते कयों हो? तुम व्यापारी के लड़के हो। इसलिए कोई छोटा-मोटा धंधा शुरू कर दो। पास के मोहल्ले में एक सेठ रहता है, जो दीन-दुखी लड़कों को व्यापार में पूंजी लगाने के लिए बिना ब्याज के पैसा उधार दे देता है। तुम उनके पास जाओ और उनसे कुछ रुपया ले आओ।˝
सवेरा होते ही लड़का सेठ के पास गया। जिस समय वह उसकी गद्दी पर पहुंचा, वह किसी लड़के को डांटते हुए समझा रहा था कि तुम इस तरह अपने जीवन में मुछ नहीं कर सकोगे। जो आदमी मेहनत नहीं करता, वह भी कोई आदमी है ! बिना उद्योग किये तुम सुखी नहीं रह सकोगे। तुम्हारा जीवन बेकार चला जायगा। उद्यम के बिना किसी का मनोरथ आज तक पूरा नहीं हुआ है। देखते हो, सामने जो मरा चूहा पड़ा है, किसी योग्य और कर्मठ व्यापारी का बेटा उसे बेचकर भी पैसा बना सकता है। सामने जो मिटटी और कोयला है, उससे वह सोना बना सकता है। चूल्हे की राख से वह लाख बना सकता है। मैंने तुम्हें इतने रुपये दिये और तुम खाली हाथ लौटकर और रुपये मांगने आये हो। यहां से चले जाओ। तुम में काम करने की शक्ति नहीं है। तुम अपने प्रति भी ईमानदार नहीं हो।
इस लड़के ने जब दोनों के बीच की बातचीत सुनी तो उसने सेठ से कहा, “सेठजी, मैं इस मरे हुए चूहे को आपसे पूंजी के रूप में उधार ले जाना चाहता हूं।˝
यह कहकर वह लड़का वहां रुका नहीं, बल्कि उसमरे चूहे को पूंछ के सहारे उठाकर वहां से चला गया। सेठ ने उस लड़के का परिचय जानने के लिए अपने मुनीम को उसकी खोज में भेजा। पर वह लड़का तो नगर की भीड़ में खो गया था।
लौटकर मुनीम ने सेठ को इस बात की सूचना दी तो उसे बड़ी चिंता हुई। उसने अपने मुनीम से कहा, “मुनीम जी, वह लड़का बड़ा होनहार है। एक दिन वह अवश्य लखपति बनेगा। अगर मैं उसकी कुछ मदद कर सकता तो मुझे बड़ी खुशी होती।˝
उसे मरे चूहे को आखिर कौन लेतो? एक बनिये के बेटे ने अपनी बिल्ली के शिकार के लिए उसे कुछ पैसे देकर खरीद लिया। लड़के ने उन पैसों से कुछ चने और एक घड़ा खरीदा। फिर उस घड़े में जल भरकर नगर के चौराहे पर एक पेड़ के नचे बैठ गया। उस रास्ते से गुजरने वाले लोगों को वह बड़ी नम्रता से कुछ चने देकर जल पिलाता । लड़के की उस सेवा से खुश होकर वे उसे कुछ पैसे दे देते।
लकड़ी काटने के काम से बढ़ई लोग भी उसी रास्ते से गुजरते थे। वे लोग भी वहां पानी पीते और उस लड़के को बदले में लकड़ियां दे जाते। इस तरह वहां लकड़ियों का ढेर लग गया। एक दिन लकड़ी के एक व्यापारी के हाथ उस लड़के ने सारी लकड़ियां बेच दीं। लकड़ी की उस पूंजी से उसने कुछ और चने खरीदे।
वह पहले की तरह राहगीरों को चने खिलाकर पानी पिलाता रहा और बदले में पैसे और लकड़ी पाता रहा। धीरे-धीरे उसकी पूंजी बढ़ने लगी। जब उसके पास कुछ ज्यादा पैसा हो गया तो वह लकड़ियां भी खरीदने लगा। उनके बेचने पर उसे बड़ा लाभ हुआ।
लेकिन वर्षा ऋतु के आने से लकड़ियों का धंधा मंद पड़ने लगा। लोग पानी भी कम पीने लगे। तब उस लड़के ने चौराहे पर जमा लकड़ियों को लेकर बाजार में बेच दिया और उसी पूंजी से वहां उसने एक दुकान खोलदी। थोड़े ही दिनों में उसकी दुकान चल पड़ी। रोज के काम में आनेवाली सभी चीजें उस दुकान पर सस्ते दामों में मिल जाती थीं। लड़का कुछ ही दिनों में बड़ा व्यापारी बनगया। उसने वहीं अपने लिए एक मकान बनवा लिया। उसमें वह अपनी मां के साथ अच्छी तरह से रहने लगा।
एक दिन जब वह अपनी दुकान पर बैठा था, उसे अचानक उस सेठ की याद आ गई, जिसके यहां से वह मरा हुआ चूहा लाया था। उसने उसके ऋण से मुक्त होने के लिए सोने का चूहा बनवाया और उसे साथ लेकर सेठ के यहां गया। उसने सेठ से कहा, “सेठजी, आपके चूहे ने मुझे लखपति बना दिया है। मेरे जीवन की धारा ही बदल दी है।˝
सेठ उस घटना को भूल गये थे। जब लड़के ने सारी कहानी सुनाई तो उस पर वह इतने मुग्ध हो गये कि उन्होंने उसे अपने पास गद्दी पर बैठा लिया। बाद में अपनी लड़की का विवाह उसके साथ कर दिया। □
A Memoir of the Very Rev. Theobald Mathew; With an Account of the Rise and
Progress of Temperance in Ireland (Birmingham)
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A Memoir of the Very Rev. Theobald Mathew; With an Account of the Rise and
Progress of Temperance in Ireland (with Morris's "The Evil Effects of
Drunkennes...
11 hours ago
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