एक थे जोशी। वे ज्योतिष तो जानते नहीं थे, फिर भी दिखावा करके कमाते और खाते थे। एक दिन वे अपने गांव से दूसरे गांव जाने के लिए रवाना हुए। रास्ते में उन्होंने देखा कि दो सफेद बैल एक खेत में चर रहे हैं। उन्होंने यह बात अपने ध्यान में रख ली।
जोशीजी गांव में पहुंचे और एक पटेल के घर ठहरे। वहां उनसे मिलने एक किसान आया। उसके साथ ही उसकी घरवाली भी आई। किसान ने जाशीजी से कहा, "जोशी महाराज! हमारे दो सफ़ेद बैल खो गए हैं। क्या आप अपना पोथी-पत्रा देखकर हमको बता सकेंगे कि वे किस तरफ गए हैं?"
जोशीजी कुछ बुदबुदाए। फिर एक बहुत पुराना सड़ा-सा पंचांग निकालकर देखा और कहा, "पटेल! तुम्हारे बैल पश्चिमी सिवान वाले फलां खेत में हैं। वहां जाकर उनको ले आओ।" जब पटेल उस खेत में पहुंचा, तो वहां उसे अपने बैल मिल गए। पटेल बहुत खुश हुआ और उसने जोशीजी को भी खुश कर दिया।
दूसरे दिन जोशीजी की परीक्षा करने के लिए मकान-मालिक ने उनसे पूछा, "महाराज" अगर आपकी ज्योतिष विद्या सच्ची है, तो बजाइए कि आज हमारे घर में कितनी रोटियां बनी थीं? जोशीजी के पास कोई काम तो था नहीं, इसलिए तबे पर डाली जाने वाली रोटियों को वे गिनते रहे थे। गिनती तेरह तक पहुंची थी। इसलिए अपनी विद्या का थोड़ा दिखावा करने के बाद उन्होंने कहा, "पटेल! आज तो आपके घर में तेरह रोटियां बनी थीं।" सुनकर पटेल को बड़ा अचरज हुआ।
इन दो घटनाओं से जोशी महाराज को नाम सारे गांव में फैल गया, और गांव के लोग उनके पास ज्योतिष-संबंधी बातें पूछने के लिए आने लगे। उन्हीं दिनों राजा की रानी का नौलखा हार खो गया। जब राजा ने जोशीजी की कीर्ति सुनी,तो उन्होंने उनको बुलवाया।
राजा ने जोशी से कहा, "सुनो, टिड्डा महाराज! अपने पोथी-पत्र में देखकर बताओ कि रानी का हार कहां है या उसको कौन ले गया है? अगर हार मिल गया तो हम आपको निहाल कर देंगे।"
जोशीजी घबराए। गहरे सोच में पड़ गए। राजा ने कहा, "आज की रात आप यहां रहिए। और सारी रात सोच-समझकर सुबह बताइए। याद रखिए कि अगर आपकी बात गलत निकली, तो आपको कोल्हु में पेरकर आपका तेल निकलवा लूंगा।"
रात ब्यालू करने के बाद टिड्डा जोशी तो बिस्तर में लेट गए। लेकिन उन्हें नहीं आई। मन में डर था कि सबेरा होते ही राजा कोल्हु में पेराकर तेल निकालेगा। वह पड़े-पड़े नींद को बुला रहे थे। कह रहे थे, "ओ नींद रानी आओ! ओ, नींद रानी आओ!"
बात यह थी कि राजा की रानी के पास नींद रानी नाम की एक दासी रहती थी। और उसी ने रानी का हार चुराया था। जब उस दासी ने टिड्डा जोशी को नींद रानी आओ, नींद रानी आओ’ कहते सुना, तो वह एकदम घबरा गई। उसे लगा कि अपनी विघा कि बल से ही डिड्डा जोशी को उसका नाम मालूम हो गया है।
बच निकलने के विचार से नींदरानी ने हार टिड्डा जोशीजी को सौंप देने का निश्चय कर लिया। वह हार लेकर जोशीजी के पास पहुंची और बोली, "महाराज! यह चुराना हुआ हार आप संभालिए। अब मेरा नाम किसी को मत बताइए। हार का जो करना हो, कीजिए।"
टिड्डा जोशी मन-ही-मन खुश हो गए। और बोले, "यह अच्छा हुआ। फिर टिड्डा जोशी ने नींद रानी से कहा, "सुनो यह हार अपनी रानीजी के कमरे में पलंग के नीचे रख आओ।"
सबेरा होने पर राजा ने टिड्डा जोशी को बुला भेजा। जोशीजी ने अपनी विद्या का दिखावा करते हुए एक-दो सच्चे-झूठे श्लोक बोले और फिर अपनी अंगुलियों के पोर गिनकर और होंठ हिलाकर अपना लम्बा पत्रा निकाला और कहा, "राजाजी! मेरी विद्या कहती है कि रानी का हार कहीं गुम नहीं हुआ है। आप तलाश करवाइए। हार रानी के कमरे में ही उनके पलंग के नीचे मिलना चाहिए।"
तलाश करवाने पर हार पलंग के नीचे मिल गया।
राजा टिड्डा जोशी पर बहुत खुश हो गया और उसे खूब इनाम दिया।
टिड्डा जोशी की और परीक्षा लेने के लिए राजा ने एक तरकीब सोची।
एक दिन राजा टिड्डा जोशी को अपने साथ जंगल में ले गए। जोशीजी जब इधर-उधर देख रहे थे, तब उनकी निगाह बचाकर राजा ने अपनी मुट्ठी में एक टिड्डा पकड़ लिया। फिर मुट्ठी दिखाकर टिड्डा जोशी से पूछा, "टिड्डाजी, कहिए, मेरी इस मुट्ठी में क्या है? याद रखिए, गलत कहेंगे, तो जान जायग!"
टिड्डा जोशी घबरा गए। उनको लगा कि अब सारा भेद खुल जायगा और राजा मुझे डालेगा। घबराकर अपनी विद्या की सारी हकीक़त राजा से कह देने ओर उनसे माफी मांग लेने के इरादे से वे बोले:
टपटप पर से तेरह गिने।
राह चलते दिखे बैल।‘
नींद रानी ने सौंपा हार।
राजा, टिड्डे पर क्यों यह मार?
जैसे ही टिड्डा जोशी ने यह कहा वैसे ही राजा को भरोसा हो गया कि जोशी महाराज तो सममुच सच्चे जोशी ही हैं। राजा ने अपनी मुट्ठी में रखे टिड्डे को उड़ा दिया और कहा, "वाह जोशीजी, वाह! आपने तो कमाल कर दिया।"
टिड्डे जोशी मन-ही-मन समझ गए कि इधर मरते-मरते बचे, और उधर सच्चे जोशी बने!
फिर तो राजा ने जोशीजी को भारी इनाम दिया और उनको सम्मान के साथ बिदा किया।
A Memoir of the Very Rev. Theobald Mathew; With an Account of the Rise and
Progress of Temperance in Ireland (Birmingham)
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A Memoir of the Very Rev. Theobald Mathew; With an Account of the Rise and
Progress of Temperance in Ireland (with Morris's "The Evil Effects of
Drunkennes...
11 hours ago
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