किसी जंगल में एकसुन्दर बगीचा था। उसमें बहुत-सी परियां रहती थीं। एक रात को वे उड़नखटोले में बैठकर सैर के लिए निकलीं। उड़ते-उड़ते वे एक राजा के महल की छत से होकर गुजरीं। गरमी के दिन थे, चांदनी रात थी। राजकुमार अपनी छत पर गहरी नींद में सो रहा था। परियों की रानी की निगाह इस राजकुमार पर पड़ी तो उसका दिल डोल गया। उसके जी में आया कि राजकुमार को चुपचाप उठाकर उड़ा ले जाय, परंतु उसे पृथ्वीलोक का कोई अनुभव नहीं था, इसलिए उसने ऐसा नहीं किया। वह राजकुमार को बड़ी देर तक निहारती रही। उसक साथवाली परियों ने अपनी रानी की यह हालत भांप ली। वे मजाक करती हुई बोलीं, “रानीजी, आदमियों की दुनिया से मोह नहीं करना चाहिए। चलो, अब लौट चलें। अगर जी नहीं भरा तो कल हम आपको यही ले आयंगी।”
परी रानी मुस्करा उठी। बोली, “अच्छा, चलो। मैंने कब मना किया ? लगता है, जिसने मेरे मन को मोह लिया है, उसने तुम पर भी जादू कर दिया है।”
परियां यह सुनकर खिलखिलाकर हंस पड़ीं और राजकुमार की प्रशंसा करती हुईं अपने देश को लौट गईं।
सवेरे जब राजकुमार सोकर उठा तो उसके शरीर में बड़ी ताजगी थी। वह सोचता कि हिमालय की चोटी पर पहुंच जाऊं या एक छलांग में समुन्दर को लांघ जाऊं। तभ वजीर ने आकर उसे खबर दी कि राजा की हालत बड़ी खराब है और वह आखिरी सांस ले रहे हैं। राजकुमार की खुशी काफूर हो गयी। वह तुरंत वहां पहुंच गया। राजा ने आंखें खोलीं और राजकुमार के सिर पर हाथ रखता हुआ बोला, “बेआ, वजीर साहब तुम्हारे पिता के ही समान हैं। तुम सदा उनकी बात का ख्याल रखना।”
इतना कहते-कहते राजा की आंखें सदा के लिए मुंद गयीं। राजकुमार फूट-फूटकर रोने लगा। राजा की मृत्यु पर सारे नगर ने शोक मनाया। कहने को तो राजकुमार अब राजा हो गया था, पर अपने पिता की आज्ञानुसार वह कोई भी काम वजीर की राय के बिना नहीं करता था।
एक दिन वजीर राजकुमार को महल के कमरे दिखाने ले गया। उसने सब कमरे खोल-खोलकर दिखा दिये, लेकिन एक कमरा नहीं दिखाया। राजकुमार ने बहुत जिद की, पर वजीर कैसे भी राजी न हुआ। वजीर का लड़का भी उस समय साथ था। वह राजकुमार का बड़ा गरा मित्र था। उसने वजीर से कहा, ‘पिताजी, राजपाट, महल और बाग-बगीचे सब इन्हीं के तो हैं आप इन्हें रोकते क्यों हैं ?”
वजीर ने कहा, “बेटा, तुम ठीक कहते हो। सब कुछ इन्हीं का है, लेकिन मंहाराज ने मरते समय मुझे हुक्म दिया था कि इस कमरे में राजकुमार को मत ले जाना। अगर मैं ऐसा करूंगा तो राज को बड़ा बुरा लगेगा।”
वजीर का लड़का थोड़ी देर तक सोचता रहा। फिर बोला, “लेकिन पिताजी, अब तो राजकुमार ही हमारे महाराज है। उनकी बात मानना हम सबके लिए जरूरी है। अगर आप राजा के दु:ख का इतना ध्यान रखते हैं तो हमारे इन राजा के दु:ख का भी तो ध्यान रखिये ओर दरवाजा खोल दीजिये। राजकुमार को दुखी देखकर हमारे राजा को भी शांति नहीं मिलेगी।”
वजीर ने ज्यादा हठ करना ठीक न समझ और चाबी अपने बेटे के हाथपर रख दी। ताला खोलकर तीनों अंदर पहुंचे। कमरा बड़ा संदर था। छत पर तरह-तरह के कीमती झाड़-फानूस लटक रहे थे और फर्श पर मखमल के गलीचे बिछे हुए थे। दीवार पर सुंदर-सुंदर स्त्रियों की तस्वीरें लगी थीं। यकायक राजकुमार की निगाह एक बड़ी सुंदर युवती की तस्वीर पर पड़ी। उसने वजीर से पूछा कि यह किसकी है? वजीर को जिसका डर था, वही हुआ। उसे बताना ही पड़ा कि वह सिंहलद्वीप की पदिमनी की है। राजकुमार उसकी सुन्दरता पर ऐसा मोहित हुआ कि उसी दिन उसने वजीर से कहा, “मैं पदिमनी से ही ब्याह करूंगा। जबतक पदिमी मुझे नहीं मिलेग, मैं राज के काम में हाथ नहीं लगाऊंगा।”
वजीर हैरान होकर बोला, “राजकुमार, सिहंलद्वीप पहुंचना आसान काम नहीं है। वह साम समुन्दर पार है। वहां भी जाओ तो शादी करना तो दूर, उससे भेंट करन भी असम्भव है। उसकी तलाश में जो भी गया, लौटकर नहीं आया। फिर ऐसे अनहोने काम में हाथ डालने की सलाह मैं आपको कैसे दे सकता हूं?”
पर राजकुमार अपनी बात पर अड़ा रहा। वजीर का लड़का उसका साथ देने को तैयार हो गया। वे दोनों घोड़े पर सवार होकर चल दिये। चलते-चलते दिन डूब गया। वे एक बाग में पहुंचे और अपने-अपने घोड़े खोल दिये। हाथ-मुंह धोकर कुछ खाया-पिया। वे थके हुए तो थे ही, चादर बिछाकर लेट गये। कुछ देर के बाद ही गहरी नींद में सो गये। आंख खुली और चलने को हुए तो देखते कया हैं कि बाग का फाटक बंद हो गया है और वहां कोई खोलने वाल नहीं है।
बगीचे के बीचों-बीच संगमरमर का एक चबूतरा था। आधी रात पर वहां कालीन बिछाये गये, फूलों और इत्र की सुगंधि चारों ओर फैलने लगी। फिर चबूतरे पर एक सोने का सिंहासन रख दिया गया। कुछ ही देर में घर-घर करता हुआ एक उड़नखटोला वहां उतरा। उसके चारों पायों को एक-एक परी पकड़े हुए थी और उस पर उनकी रानी विराजमान थीं। चारों परियों ने अपनी रानी को सहारा देकर नीचे उतारा और रत्नजड़ित सोने के सिंहासन पर बिठा दिया। परीरानी ने इधर-उधर देखा और अपनी सखियों से कहा, “वह देखो, पेड़ के नीचे चादर बिछाये दो आदमी सो रहे हैं। उनमें से एक वही राजकुमार है। उसे तुरंत मेरे सामने लाओ।”
हुक्म करने की देर थी कि परियां सोते हुए राजकुमार को अपनी रानी के सामने ले आईं। राजकुमार की आंख खुल गई और वह परियों कीजगमगाहट से चकाचौंध हो गया। परियों को अपने आगे-पीछे देखकर उसे बड़ा डर लगा और हाथ जोड़कर बोला, “मुझे जाने दीजिये।”
परी रानी ने मुस्कराते हुए कहा, “राजकुमार, अब तुम कहीं नहीं जा सकते। तुम्हें मुझसे विवाह करना होगा।”
राजकुमार बड़ी मुसीबत में पड़ गया। बाला, “परी रानी, मैं क्षमा चाहता हूं। मैं सिंहलद्वीप की पदिमनी की तलाश में निकला हूं। इस समय मै। विवाह नहीं कर सकता।”
परी ने कहा, “भोले राजकुमार, सिंहलद्वीप की पदिमनी तक आदमी की पहुंच सम्भव नहीं है। वह दैवी शक्ति के बिना कभी नहीं मिल सकती। अगर तुम मुझसे विवाह कर लोगे तो मैं तुम्हें ऐसी चीज दूंगी, जिससे सिंहलद्वीप कीपदिमनी तुम्हें आसानी से मिल जायेगी।”
राजकुमार यह सुनकर बड़ा खुश हुआ और बोला, “परी रानी, मैं तुमसे जरूर शादी करूंगा, पर तुम्हें मेरी एक बात माननी होगी। मैं जब पदिमनी को लेकर लौटूंगा तभी तुम्हें अपने साथ ले जा सकूंगा। मैं प्रतिज्ञा करता हूं कि मेरी इस बात में कोई हेर-फेर नहीं होगी।”
परी ने प्रसन्न होकर अपनी अंगूठी उतारी और राजकुमार की उंगली में पहनाती हुई बोली, “यह अंगूठी जबतक तुम्हारे पास रहेगी कोई भी विपत्ति तुम्हारे ऊपर असार न करेगी। इसके पास रहने से तुम्हारे ऊपर किसी का जादू-टोना नहीं चल सकेगा।”
अंगूठी देकर परी रानी आकाश में उड़ गई। राजकुमार वजीर के लड़के के पा आकर सो गया। सवेरे उन दोनों ने देखा कि बगीचे का फाटक खुला हुआ है। वे दोनों घोड़ों पर सवार होकर चल दिये। पदिमनी से मिलने की राजकुमार को ऐसी उतावली थी कि वह इतना तेज चला कि वजीर का लड़का उससे बिछुड़ गया। चलते-चलते राजकुमार एक ऐसे शहर में पहुंचा, जहां हर दरवाजे पर तलवारें-ही-तलवारें टंगी हुई थीं। एक दरवाजे पर उसने एक बुढ़िया को बैठे हुए देखा। उसे बड़े जोर की प्यास लगी थी। पानी पीने के लिए वह बुढ़िया के पास पहुंच गया। बुढ़िया झूठ-मूठ का लाड़ दिखाती हुई बोली, “हाय बेटा ! तू बड़े दिनों के बाद दिखाई दिया है। तू तो मुझे पहचान भी नहीं रहा। भूल गया अपनी बुआ को ?”
यह कहते-कहते उसने राजकुमार को ह्रदय से लगा लिया और चुपचाप उसकी अंगूठी उतार ली। इसके बाद उसने राजकुमार को मक्खी बनाकर दीवार से चिपका दिया।
उधर वजीर के लड़के को राजकुमारी की तलाश में भटकते-भटकते बहुत दिन निकल गये। अंत में उसे एक उपाय सूझा। वह परी रानी के बगीचे में पहुंचा और रात को एक पेड़ पर चढ़ गया। आधी-रात को परी रानी उसी चबूतरे पर उतरी। वह वजीर के लड़के की विपदा को समझ गई। उसने उसे सामने बुलाकर कहा, “यहां से सौ योजना की दूरी पर एक जंगल है। उसने उसे सामने बुलाकर कहा, “यहां से सौ योजन की दूरी पर एक जंगल है। उसमें तरह-तरह के हिंसक पशु रहते हैं। वहां ताड़ के पेड़ पर एक पिंजड़ा टंगा हुआ है। उसमें एक तोता बैठा है। उस तोते में उस जादूगरनी को जान है, जिसने तुम्हारे राजकुमार को मक्खी बनाकर अपने घर में दीवार से चिपका रक्खा है।
वजीर के लड़के ने पूछा, “इतनी दूर मैं कैसे पहुंच सकता हूं?”
परी रानी ने वजीर के लड़केको अपने कान की बाली उतारकर दीऔर कहा कि इसको पास रखने से तुम सौ योजन एक घंटे में तय कर लोगे। इसमें एक सिफत यह भी है कि तुम सबको देख सकोगे औरत तुम्हें कोई नहीं देख पायगा। इस प्रकार तोते के पिंजड़े तक पहुंचने में तुम्हें कोई कठिनाई नहीं होगी और तोते को मारना तुम्हारे बांये हाथ का खेल होगा।
वजीर का लड़का बाली लेकर खुशी-खुशी जंगल की ओर चल दिया। पेड़ के पास पहुंचकर उसने पिंजड़ा उतारा ओर तोते की गर्दन मरोड़ डाली। इधर तोते का मरना था कि जादूगरनी का भी अंत हो गया। वजीर का लड़का वहां से जादूगरनी के घर पहुंचा। जरदूगरनी की उंगली से जैसे ही उसने अंगूठी खींची कि राजकुमार मक्खी से फिर आदमी बन गया। वजीर के लड़के से मिलकर राजकुमार खुशी के मारे उछल पड़ा। वजीर के लड़के ने राजकुमार को सारा किस्सा कह सुनाया।
अब दोनों साथ-साथ पदिमनी से मिलने चल दिये। चलते-चलते वे बहुत थक गये थे। रात भर के लिए वे एक सराय में रुक गये। राजकुमार सो रहा था। उधर से विमान में बैठकर महादेव-पार्वती निकले। दोनों बातचीत करते चले जा रहे थे। यकायक महादेवजी ने कहा, “पार्वती, इस नगर की राजकुमारी बहुत सुंदर और गुणवती है। राजा उसकी शादी एक काने राजकुमार के साथ कर रहा है। अगर ब्याह हो गया तो जनमभर राजकुमारी को काने के साथ रहना पड़ेगा। मैं इसी सोच में हूं कि इस सुन्दरी को काने से कैसे छुटकारा दिलाऊं ?”
पार्वतीजी ने नीचे सोये हुए राजकुमार की ओर इशारा करते हुए कहा, “देखिये जरा नीचे की ओर, कितना संदर राजकुमार है! विमानउतारिये और राजकुमार को लेकर वर की जगह पहुंचा दीजिये।”
महादेवजी को यह युक्ति जंच गई। उन्होंने ऐसा ही किया। राजकुमार की शादी उस राजकुमारी से हो गयी। विदा के समय राजकुमार बड़े चक्कर में पड़ा। विवाह करने के बाद लौटते समय मैं तुम्हें साथ ले जाऊंगा। इस समय तो तुम मुझे जाने दो।”
राजकुमारी को राजकुमार पर विश्वास होगया। उसने उसेदो बाल दिये। एक सफेद ओर एक काला। राजकुमारी ने कहा कि काला बाल जलाओगे तो काला हो जायेगा और सारी इच्छाएं पूरी कर देगा।
राजकुमार बाल पाकर बड़ा खुश हुआ और राजकुमारी को लौटने का भरोसा देकर सिंहलद्वीप की ओर चल पड़ा। पहले उसने काला बाल जलाया। बाल के जलाने की देर थी कि काला दैत्य राजकुमार के आगे आ खड़ा हुआ। राजकुमार पहले तो बहुत डरा, पर वह जानता था कि वह दैत्य उसका सेवक है। उसने हुक्म दिया, “जाओ, वजीर के लड़के को मेरे पास ले आओ।”
काला दैत्य उसी क्षण वजीर के लड़के को राजकुमार के पास ले आया। फिर बोला, “और कोई आज्ञा ?”
राजकुमार ने कहा, “हम दोनों को पदिमनी के महल में पहुंचा दो।”
कहने की देर थी कि वे पदिमी के महल के फाटक पर आ गये। वहां एक ह्रष्ट-पुष्ट संतरी पहरा दे रहा था। उसने अंदर नहीं जाने दिया। राजकुमार ने फिर काला बाल जलाया। दैत्य हाजिर हो गया। राजकुमार के हुक्म देते ही काले दैत्यों की पलटन आ गई। उन्होंने रानी पदिमनी के सिपाहियों को बात-की-बात में मौत के घाट उतार दिया। इसके बाद दैत्य गायग हो गये।
राजकुमार और वजीर का लड़का महल में घुसे। राजकुमार ने सफेद बाल जलाया। सफेद देव आ गया। राजकुमार ने उससे कहा, “मैं पदिमनी से विवाह करना चाहता हूं। बारात सजाकर लाओ।”
जरा-सी देर में देव अपने साथ एक बड़ी शानदार बारात सजा कर ले आया। पदिमनी के पिता ने जब देखा कि कोई राजकुमार पदिमनी को शान-शौकत से ब्याहने आया है और इतना शक्तिशाली है कि उसने उसकी सारी सेना नष्ट कर डाली है तो उसने चूं तक न की। राजकुमार का ब्याह पदिमनी से हो गया।
अब राजकुमार पदिमनी को लेकर अपने घर की ओर रवाना हो गया। रास्ते में से उसने उस राजकुमारी को अपने साथ लिया, जिसने उसे बाल दिये थे। इसके बाद परी रानी के बगीचे में आया। रात को सब वहीं ठहरे। आधी-रात को परी रानी आई। राजकुमार उसे देखकर बड़ा प्रसन्न हुआ और बोला, “यह तुम्हारी ही कृपा का फल है। जो मैं पदिमनी को लेकर यहां अच्छी तरह लौट आया। यह दूसरी राजकुमारी भी तुम्हारी तरह मुसीबत में मेरी सहायक हुई है। तुम इसे छोटी बहन समझकर खूब प्यार से रखना।”
परीरानी गदगद कंठ से बाली, “राजकुमार, तुम्हारी खुशी में मेरी खुशी है। पदिमनी के कारण ही हम दोनों को तुम्हारे जैसा सुंदर राजकुमार मिला है। पदिमनी आज से पटरानी हुई और हम दोनों उसकी छोटी बहनें।”
वे सब उड़नखटोले में बैठकर राजकुमार के देश में आ गयीं। नगर भर में खूब आनन्द मनाया गया और धूमधाम के साथ राजकुमार की तीनों रानियों के साथ सवारी निकाली गई। □
A Memoir of the Very Rev. Theobald Mathew; With an Account of the Rise and
Progress of Temperance in Ireland (Birmingham)
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A Memoir of the Very Rev. Theobald Mathew; With an Account of the Rise and
Progress of Temperance in Ireland (with Morris's "The Evil Effects of
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