एक थे राम सिंह भाई और दूसरे थे चन्दाभाई। दोनों जागीरदार। रामसिंह भाई गावं मुखिया, और पाच-सात गांवों के मालिक। चन्दाभाई के पास सिर्फ दो हल की ज़मीन। रामसिंह भाई का अपना राज-दरबार था। जो भी आता, चौपाल पर बैठता। हुक्का-पानी पीता। खाना खाता और घर जाता।
चन्दाभाई के घर मे तो कुछ भी नही था। घर के दरवाजें आया हुआ भूखा ही लौट जाता। लेकिन चन्दाभाई ज़बान के बहुत तेज-तर्रार थें। एक बढिया घोड़ी रखते थे। सफेद कपड़े पहनते थे, और गावं मे बैठकर गप्पे हांका करते थे। जहां भी पहुच जाते, मेहमान के ठाठ से रहते और मौज करते।
चन्दाभाई ने रामसिंह भाई के साथ दोस्ती कर ली। रामसिंह भाई को कमी किस बात की थी? चन्दाभाई रामसिंह भाई के घर साल मे दो-तीन महीने रहते। खाते-पीते और चैन की बंसी बजाते। लौटते समय बहुत आग्रह करके कहते, रामसिंह भाई! अब तो एक बार आप मेरे घर जरूर ही पधारिए!"
संयोग से एक बार रामसिंह भाई को कहीं रिश्तेदारी मे जाना हुआ। रास्तें मे चन्दाभाई का गांव पड़ा। रामसिंह भाई ने सोचा—चन्दाभाई बार-बार आग्रह करके कहे रहते है, पर हम कभी इनके घर जाते नहीं। चलूं, क्यों न इस बार मै इनका गढ़ भी देख लूं?"
रामसिंह भाई ने ओर उनके भतीजों ने अपनी घोडियां चन्दाभाई के गावं की ओर मोड़ दी। किसी ने चन्दाभाई को खबद दी। वह परेशान हो गये। सोचने लगे—रामसिंह भाई के घर तो मै खूब खाता-पीता रहा हूं लेकिन मै उनको खिलाऊंगा क्या? घर मे तो चूहे डण्ड पेल रहे थे।
इतने मे रामसिंह भाई की घोड़ी हिनहिनाई और रामसिंह भाई ने आवाज लगाई, "चन्दाभाई कहां है?" बेचारे चन्दाभाई क्या मुंह दिखाते? वे तो ठुकरानी की साड़ी ओढ़कर सो गए। ठाकुर रामसिंह गढ़ के अन्दर आ पहुचे। पूछा, "क्या ठाकुर चन्दाभाई घर मे है?"
एक बहन ने बाहर निकलकर कहा, "दरबार तो जूनागढ़ की जागीर के काम से की गए है। कल-परसों तक लोटेगें।"
रामसिंह भाई के मन मे शक पैदा हुआ। सोचा बात कुछ गलत लगती है। कल ही तो खबर मिली थी। कि चन्दाभाई गांव मे ही है।
ठाकुर रामसिंह ने कहा, "अच्छी बात है। लेकिन घर के अन्दर ये सोए कौन है? कोई बीमार तो नही है?"
बहन बोली, "ये तो जसोदा भुवा है। सिर दुख रहा है, इसलिए सोई है।"
ठाकुर रामसिंह ने सोचा—जसोदा भुवा के कुशल समाचार तो पूछ ही लें। घर मे पहुचकर उन्होने साड़ी ऊपर उठाई और पूछा, "क्यों भुवा जी! सिर क्यों दुख् रहा है?" तभी देखते क्या है कि भुवाजी की जगह वहां मूंछों वाले चन्दाभाई लेटे पड़े है!
देखकर रामसिंह भाई तो दंग रह गए। खिसिया भी गए। उनके साथ एक चारण था। उससे रहा नही गयां। उसकी जीभ कुलबुलाई वह बोला:
चन्दाभाई की चांदनी।
और रामजी भाई की रोटी।
जसोदा भुआ के मूंछे आई।
घड़ी कलजुग की खोटी।•
A Concise History of the Commencement, Progress and Present Condition of the American Colonies in Liberia (Wilkeson)
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A Concise History of the Commencement, Progress and Present Condition of
the American Colonies in Liberia (Washington: Printed at the Madisonian
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