यद्यपि परमात्मा अनुभूति का विषय है तथा तर्क से परमात्मा के अस्तित्व को प्रमाणिक नहीं किया जा सकता तथापि यह महत्वपूर्ण है कि मनुष्य परमात्मा के सम्बन्ध में कैसी धारणा बनाता है। परमात्मा एक है यद्यपि उसे अनेक रूपों में पूजा जाता है। वह न्यायकारी और दयामय है। उसके न्याय में दया है। वह एक सर्वव्यापक सूक्ष्म शक्ति है तथा वह प्रत्येक प्राणी के भीतर रमा हुआ है वह मानव के हृदय में शक्ति के स्रोत तथा पथ-प्रदर्शक एवं प्रेरक प्रकाश के रूप में बसा हुआ है। ध्यान तथा प्रार्थना के द्वारा मनुष्य अपने भीतर छिपी हुई ईश्वरीय सत्ता से सम्बन्ध जोड़कर शान्ति और शक्ति प्राप्त कर सकता है। किन्तु कोई मनुष्य कितना भी पूजा-पाठ करता हो, यदि वह अपने स्वभाव को नहीं सुधारता और मन को अहंकार, द्वेष घृणा, क्रोध, प्रलोभन और भय से मुक्त नहीं करता तथा प्रेम, परोपकार, क्षमा आदि मानवीय गुणों से युक्त नहीं होती, वह अपना अथवा भीतर अतीन्द्रिय चेतना का विकास करना, कर्मनिष्ठ होना तथा निस्स्वार्थ भाव से प्राणिमात्र को सुख और शान्ति देने का प्रयत्न करना।
प्रायः परमात्मा के सम्बन्ध में यह कल्पना की जाती है कि वह एक खुशामदपसन्द और खौफनाक बादशाह की तरह हुकूमत करता है, उसे इन्सान का हँसना, खेलना पसन्द नहीं और उससे हर वक्ति डरते रहना चाहिए। यह हास्यास्पद है। परमात्मा मनुष्य का हितैषी, बन्धु, सहायक,रक्षक और सत्कर्म-प्रेरक है। वह भयकर्ता और मंगलकर्त्ता और मंगलकर्त्ता है तथा विघ्नविनाशक है। वह मनुष्य को सुख प्राप्त करते हुए देखकर उससरे द्वेष नहीं करता। परमात्मा में हमारा विश्वास तभी सार्थक है जब हम उसके साथ आत्मीयता का एक व्यक्तिगत नाता मानकर उसे अपने मन-मन्दिर में आसीन कर लें तथा आवश्यकता होने पर उससे प्रेरणा और सहायता ले सकें। परमात्मा के सम्बन्ध में प्रत्येक मनुष्य की धारणा उसके आन्तरिक विकास विचार, और अनुभव पर आधारित होती हैं। वह अनाम, अरूप होकर भी निरन्तर रक्षा करने के लिए तैयार है।
The Colonial Policy of Great Britain, Considered With Relation to Her North
American Provinces, and West India Posessions (British traveller)
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The Colonial Policy of Great Britain, Considered With Relation to Her North
American Provinces, and West India Posessions (London: Printed for Baldwin,
Cra...
10 hours ago
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