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Thursday, June 25, 2009

खड़बड़-खड़बड़ खोदत है

एक ब्राह्मण था। बड़ा ही ग़रीब था। एक बार उसकी घरवाली ने उससे कहा, "अच्छा हो, आप कोई काम-धन्धा शुरू करें। अब तो बच्चों को कभी-कभी भूखे सोना पड़ता है।"
ब्राह्मण बोला, "लेकिन मैं करूं क्या? मुझे तो कुछ भी नहीं आता। कोई रास्ता सुझाओ।"
ब्राह्मणी पढ़ी-लिखी और समझदार थी। उसने कहा, "सुनिए, यह एक श्लोक में आपको रटवाये देती हूं। आप इसे किसी राजा को सुनायंगे, तो सुन सुनकर वह आपको कुछ पैसा जरूर देंगे। श्लोक भूलिए मत।" ब्राह्मणी ने ब्राह्मण को श्लोक याद करवा दिया।
ब्राह्मण श्लोक बोलता-बोलता दूर की यात्रा पर निकल पड़ा। रास्ते में नदी मिली। नहाने-धोने और खाने-पीने के लिए ब्राह्मण वहां रूक गया। जब उसका मन नहाने-धोने में लगा,तो वह अपनी घरवाली का सिखाया हुआ श्लोक भूल गया। वह श्लोक को याद करने लगा, पर कुछ भी याद नहीं आया। इसी बीच उसने देखा कि एक जल-मुर्गी नदी-किनारे कुछ खोद रही है। श्लोक को याद करते-करते जब उस जलमुर्गी को खोदते देखा, तो उसके मन में एक नया चरण उजागर हुआ। वह बोलने लगा:
खड़बड़-खड़बड़ खोदत है।
जब ब्राह्मण ‘खड़बड़-खड़बड़ खोदत है’ बोलने लगा, तो उसकी आवाज सुनकर जलमुर्गी अपनी गरदन लम्बी करके देखने लगी। यह देखकर ब्राह्मण के मन में दूसरा चरण उभरा। वह बोला:
लम्बी गरदन देखत है।
ब्राह्मण जब दूसरी बार बोला, तो जलमुर्गी मारे डर के चुपचाप छिप गई। यह देखकर ब्राह्मण के मन में तीसरा चरण जन्मा। उसने कहा:
उकड़ू मुकडू बैठत है।
ब्राह्मण की आवाज़ सुनकर जलमुर्गी तेजी से दौड़ी और पानी में कूद पड़ी। इस दूश्य को देखकर ब्राह्मण के मन में चौथा चरण उठा। वह बोला:
सरसर सरसर दौड़त है।
ब्राह्मण पहला श्लोक तो भूल चुका था, पर अब उसे यह नया श्लोक याद हो गया था। यह मानकर कि यही श्लोक उसे सिखाया गया है, इस श्लोक को दोहराता वह आगे बढ़ा:
खड़बड़-खड़बड़ खोदत है।
लम्बी गरदन देखत है।
उकड़ू मुकड़ू बैठत है।
सरसर सरसर दौड़त है।
चलते चलते वह एक नगर में पहुंचा। वह नगर के राजा के दरबार में गया और सभा में जाकर उसने अपना श्लोक सुना दिया।
राजा ने यह विचित्र और नया श्लोक लिख लिया। श्लोक का अर्थ न राजा की समझ में आया, और न दरबारियों में से ही किसी की समझ में आया। यह देखकर राजा ने ब्राह्मण राजा ने ब्राह्मण से कहा, "महाराज! दो-चार दिन के बाद आप फिर दरबार में आइए। अभी हमारे मेहमान-घर में खा-पीकर आराम से रहिए। अम आपको आपके इस श्लोक का जवाब देंगे।"
राजा ने ब्राह्मण का यह श्लोक अपने सोने के कमरे में लिखवा लिया। राजा श्लोक का अर्थ लगाने के लिए रोज रात बारह बजे जागता और रात के सुनसान में अकेला बैठकर श्लोक का एक-एक चरण बोलता और उसके अर्थ पर विचार करता रहता।
एक रात की बात है। चार चोर राजा के महल में चोरी करने आए। राजमहल के पास पहुंचकर वहां से खोदने लगे। रात के ठीक बारह बजे थे। उस समय राजा श्लोक के पहले चरण के बारे में सोच रहा था। उधर चोर खोदने के काम में लगे थे। राजा की बात उनके कानों तक पहुंची:
खड़बड़-खड़बड़ खोदत है।
चोरों ने सोचा कि राजा जाग रहा है और खोदने की आवाज सुन रहा है। इसलिए चोरों में से एक चोर राजमहल की खिड़की पर चढ़ा और उस बात का निश्चय करने के लिए कि राजा जाग रहा है या नहीं, वह लम्बी गरदन करके कमरे में देखने लगा। ठीक इसी समय राजा ने दूसरा चरण दोहराया:
लम्बी गरदन देखत है।
यह सुनकर खिड़की में से देखने वाले चोर को विश्वास हो गया कि राजा जाग रहा है। यही नहीं उसने उसकी लम्बी गरदन को भी देख लिया है। इसलिए वह तेजी से नीचे उतर गया और उसने अपने साथियों को इशारे से कहा कि सब चुपचाप बैठ जायं। सब सिमटकर चुपचाप बैठ गए। इसी बीच राजा ने तीसरा चरण दोहराया:
उकड़ू-मुकड़ू बैठत है।
सुनकर चोरों ने सोचा कि अब भागना चाहिए। राजा को पता चल गया है और वह हमें देख भी रहा है। अब हम जरूर पकड़े जायेंगे और मारे भी जायंगे। सब डरकर एक साथ दौड़े। इतने में राजा ने चौथा चरण दोहराया:


ये चोर तो राजा के दरबान ही थे। ये ही राजमहल के चौकीदार भी थे। इनकी नीयत खराब हो गई थी, इसलिए चोरी करने निकल पड़े। चोर तो भागकर अपने घर पहुंच गए। लेकिन जब दूसरे दिन दरबार गए तो वे सलामी के लिए राजा के सामने हाजिर हुए। उनको पक्का भरोसा हो गया था कि राजा सबकुछ जान गए हैं और उन्होंने उनको पहचान भी लिया है।
जब दरबान सलामी के लिए नहीं आए, तो राजा ने पूछा, "आज दरबान सलामी के लिए क्यों नहीं आए? उनके घर कोई बीमार तो नहीं है?" राजा ने दूसरे सिपाहियों से कहा कि वे दरबानों को बुला लाएं। दरबान आए तो राजा को सलाम करके खड़े हो गए।
राजा ने पूछा, "कहिए, आज आप लोग दरबार में हाजिर क्यों नहीं हुए?"
दरबान तो थरथर कांपने लगे। उनको भरोसा था ही कि राजा सारी बात जान चुके हैं। यह सोचकर कि अगर झूठ बोलेंगे, तो ज्यादा सजा भुगतनी होगी—उन्होंने रातवाली सारी बात सही-सही सुना दी।
बात सुनकर राजा को तो बहुत ही अचम्भा हुआ। उसने सोचा कि यह सारा प्रताप तो ब्राह्मण के उस श्लोक का ही है। श्लोक तो बड़ा ही चमत्कारी सिद्ध हुआ! राजा ब्राह्मण पर बहुत प्रसन्न हो गया। उसने ब्राह्मण को बुलाया और भरपूर इनाम देकर विदा किया।

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