संसार के मनुष्य के मस्तिष्क से बढ़कर अन्य कुछ भी जटिल एवं ऊर्जामय नहीं है। मानव-मस्तिष्क में चिन्तन और अवधारणा की इकाइयों के रूप में परस्पर जुड़ी हुई तथा अत्यधिक संवेदनशील लगभग दस-बारह अरब कोशिकाएँ हैं। प्रत्येक मस्तिष्क कोशिका (न्यूरोन) मनुष्य के तंत्रिका तंत्र (नर्वस सिस्टम) की एक अत्यन्त सूक्ष्म इकाई होती है जिसका जटिलता जटिलतम संकलप (कम्पूटर ) की अपेक्षा अनन्तगुणा विलक्षण होती है। प्रकृति की विलक्षणता यह है कि कोई दो न्यूरोन समान नहीं होते तथा प्रत्येक न्यूरोन में लगभग दो करोड़ आर०एन०ए० अणु होते हैं जिनमें से प्रत्येक जीवरसायन के चमत्कार से एक लाख प्रकार के प्रोटीन बना सकता है। मस्तिष्क के असंख्य न्यूरोन में से कुछ प्रतिशित ही जाग्रत् होकर सक्रिय रहते हैं तथा अधिकांश प्रायः सुप्तावस्था में ही रहते हैं। कदाचित् ध्यानयोगी प्रसुप्त न्युरोनों की संख्या को जाग्रत् करके असाधारण मानसिक ऊर्जा उत्पन्न कर लेते हैं। यदि सभी प्रसुप्त न्यूरोनें को किसी प्रकार जाग्रत् करके सक्रिय कर दिया जाए तो मानव अनन्त ऊर्जा का केन्द्र बनकर अनेक सक्रिय कर दिया जाए तो मानव अनन्त ऊर्जा का केन्द्र बनकर अनेक अचिन्त्य कार्य कर सकता है। जाग्रत् न्यूरोन निरन्त असंख्य ऊर्जा-तरंगों को उत्पन्न एवमं उत्सर्जित करते हैं। मानसिक ऊर्जा के भण्डार ये न्यूरोन सूक्ष्म चिन्तन, तर्क-वितर्क, निर्णय इत्यादि करने का विलक्षण कार्य करते हैं। न्यूरोन ने केवल ऊर्जा के स्रोत हैं, बल्कि तरंगों के रूप में ऊर्जा का उत्सर्जन भी करते हैं तथा निर्न्त सक्रिय रहकर मस्तिष्क को गतिशील रखते हैं। मनुष्य न्यूरोनों के रहस्य को जानकर संसार का भी अपार हित कर सकता है। भय, चिन्ता और तनाव से ग्रस्त होने पर मनुष्य अपने अपार शक्ति-स्रोत पर अनावश्यक बोझ डालकर अपना घोर अहित करता है। प्रकृति के महानतम चमत्कार मस्तिष्क में रोगों को दूर करने, दीर्घायु होने, समस्याओं का समाधान करने तथा विलक्षण कार्य करने की क्षमता है किन्तु सर्वप्रथम संकल्प लेकर धैर्यपूर्वक आन्तरिक विकास करने की आवश्यकता है ।
मनुष्य मानसिक शक्तियों के विकास द्वारा प्राप्त अनेक प्रकार की सिद्धियों से तथा विश्व का कल्याण कर सकता है। किन्तु धन, सत्ता, ख्याति इत्यादि के प्रलोभन में फँसकर उनके दुरुपयोग द्वारा अपना पतन भी कर सकता है। अनेक लोग भगवान् अथवा सिद्ध पुरुष बनने के लोभ में युक्तिपूर्ण ढंग से विविध प्रकार के चमत्कार-प्रदर्शन एवं सम्मोहन करके श्रद्धालुजन की प्रवंचना करते हैं तथा अनेक लोग कालाजादू आदि टोटकों से अन्धविश्वास को बढ़ावा देते हैं। विवेकशील पुरुष सूक्ष्म निरीक्षण द्वारा लोगों की सात्त्विक तथा तामासिक वृत्ति को सुगमता से जान लेते हैं तथा वे मिथ्याचार एवं अनधविश्वास को प्रोत्साहित नहीं करते। वास्तव में यह विषय अत्यन्त रहस्यपूर्ण है तथा विवेकशील पुरुष को मानसिक शक्ति की सिद्धियों के क्षेत्र में अत्यन्त सावधानतापूर्वक प्रवेश करना चाहिए। हमें यह भी स्पष्ट समझ लेना चाहिए कि सामान्यतः संसार में कर्म का कोई विकल्प नहीं है। यदि कोई रोगी है तो उसके हित के लिए, विधिवत् चिकित्सा करते हुए, विकसित मानसिक शक्ति का भी सदुपयोग किया जा सकता है। युद्ध की आवश्यकता होने पर युद्धस्थल में जाकर युद्ध करने का कोई विकल्प नहीं हो सकता। कर्म का परित्याग पतनकारक दोष है। इसी परिप्रेक्ष्य में मानसिक शक्तियों के विकास पर विचार करना युक्तिसंगत है। यथासंभव आंतरिक शक्तियों के उपयोग को कर्म का विकल्प नहीं बनाना चाहिए।
मानसिक शक्तियों के अनेक प्रकार हैं तथा उनका विकास करने की अनेक पद्धिति हैं। मानसिक शक्ति के विकास की साधना में सात्त्विकता, आत्म-विश्वास, धैर्य, लग्नशीलता तथा दृढता की आवश्यकता होती है। संशय चित्त की एकाग्रता को नष्ट कर देता है। एक संत पुरुष अर्द्ध रात्रि में पूर्ण शांति के वातावरण में जागकर चेतनाशक्ति द्वारा दूरानुभूति-संप्रेषण के माध्यम से सुदूर देशों में स्थित जीवन से निराश लोगों की सफल चिकित्सा एवं रोग-मुक्ति करने के लिए प्रख्यात हैं तथा असंख्य लोग मात्र दूरानुभूति से कठिन रोगों से सदा के लिए मुक्त होने को प्रमाणित कर चुके हैं। रोगी से अपेक्षा की जाती है कि वह भी पूर्वनिर्धारित समय पर प्रार्थना करे जब वे पन्द्रह मिनिट तक उसके लिए एकाग्रचित्त होकर, संकल्पबल-सहित, उसका नाम लेते हुए प्रार्थना करें। वास्तव में केवल भौतिक चिकित्सा करना पर्याप्त नहीं है क्योंकि शरीर से बाहर सचेतन विराट् तत्त्व का अस्तित्व भी महत्त्वपूर्ण है। मनुष्य को आध्यात्मिक चिन्तन एवं गहन ध्यान के द्वारा मन को विश्वव्यापी विराट् चेतना में विलीन करने से शारीरिक एवं मानसिक रोग से स्थायी मुक्ति हो जाती है। शारीरिक एवं मानसिक व्याधियों का मूल कारण मन एवं इच्चा की परतों में होता है तथा सतत चिन्तन एवं गहन ध्यान द्वारा मन के निर्मलीकरण एवं इच्छा के उदात्तीकरण पर बल दिया जाता है। हमें जो मानसिक समस्याएँ जटिल और भयावह प्रतीत होती हैं, उनकी जड़ें बहुत साधारण होती हैं तथा पे न दीखने के कारण ही कठिन प्रतीत होती हैं। उनके तह तक पहुँचने के लिए वैज्ञानिक की भाँति गहरी खोज तथा चिन्तन करना आवश्यक होता है। मन की खोज करने से तथा मन की शक्ति जगाने से मनुष्य की सभी समस्याओं का पूर्ण समाधान हो जाता है। मन की शक्ति अपार और अनन्त है। अनेक ध्यानयोगी नेत्र मूँदकर तथा ध्यानमग्न होकर स्पर्श द्वारा रोगियों के असाध्य रोदों का पूर्ण उपचार कर देते हैं। वास्तव में ध्यानावस्था में चित्त की एकाग्रता होने पर उनके हाथों से एक विचित्र ऊर्जा का विकिरण होने लगता है तथा रोगी के शरीर और मस्तिष्क में विद्युत तरंगें गतिशील होकर चमत्कारपूर्ण कार्य करती हैं। विशुद्ध आध्यात्मिक सन्तजन मात्र स्पर्श, दृष्टि शब्द अथवा संकल्प से अन्य व्यक्ति के चेतना-स्तर को ऊँचा उठाकर अकल्पनीय शक्ति को जाग्रत् कर देते हैं तथा इस शक्तिपात की क्रिया द्वारा व्यक्ति दिव्यता का अनुभव करता है। सच्चे सन्त स्वभाव से सरल और सात्त्विक होते हैं तथा वाणी में अत्न्त संयमित होते हैं। वे अपनी मानसिक ऊर्जा की तरंगों से किसी व्यक्ति के थके हुए न्यूरोनों को आवेशित(चार्ज) करके पूर्ण मानसिक स्वस्थता प्रदान कर सकते हैं। अपनी ऊर्जा-तरंगों से अन्य व्यक्ति की ऊर्जा-तरंगों को जाग्रत् किया जा सकता है जैसे एक दीपक दूसरे दीपक को प्रज्वलित कर देता हरै। सन्त पुरुष अपने शुद्ध चित्त की एकाग्रता द्वारा दूसरों में चेतना का प्रकाश जगाकर मन को सरलता से स्वस्थ कर देते हैं जैसे सशक्त उत्तोलक नीचे गिरी हुई किसी भारी वस्तु को उठाकर ऊँचे धरातल पर रख देता है। सशक्त मन की दुर्बल मन पर असाधारण प्रभाव होता है। प्रत्येक मनुष्य स्वयं भी ध्यानयोग से अपने मन को ऊँचे स्तर तक उठा सकता है। मन के ऊपर उठते ही मन स्वस्थ, सम और शान्त हो जाता है। ध्यानयोग कल्पवृक्ष की भाँति अनुपम, अद्भुत और अलौकिक है।
A Concise History of the Commencement, Progress and Present Condition of the American Colonies in Liberia (Wilkeson)
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A Concise History of the Commencement, Progress and Present Condition of
the American Colonies in Liberia (Washington: Printed at the Madisonian
office, 18...
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