जीवन एक अद्भुत यात्रा है तथा बुद्धिमान मनुष्य गंभीर दायित्व का निर्वाह करते हुए एवं संकटों का सामना करते हुए भी जीवन-यात्रा को आनन्दमय बना सकता है। जीवन को सुखमय अथवा दुःमय बनाना, मनुष्य पर ही निर्भर है। व्यक्ति दूसरों को सुखी बनाने का दायित्व तो अपने ऊपर नहीं ले सकता किन्तु वह स्वयं आनन्दरंजित रहकर दूसरों को प्रेरणा अवश्य दे सकता है। हाँ, गहन शोक के अवसर पर सहज रूप में प्रवाहित अश्रुधारा भी शोक को धोकर मन को निर्मलता एवं शीतलता प्रदान करती है। कर्तव्य-भावना मनुष्य को भविषयोन्मुखी बनाकर एवं शोक को भुलाकर उसे मूल जीवनधारा से जोड़ देती है। प्रकृति निरन्तर संदेश देती है—गतिशील होकर कर्म करने में आनन्दरस की अनुभूति करो और जीवन-पथ पर आगे बढ़ो।
विवेकशील पुरुष यह जानता है कि मनुष्य की उत्तमता भोग से त्याग की ओर तथा स्वार्थ से परमार्थ की ओर बढने में है। चिन्तनशील पुरुष विकास के क्रम में उच्चावस्था को प्राप्त करते हुए, भौतिक सुखों से ऊपर उठकर, बौद्धिक, नैतिक, एवं आध्यात्मिक आनन्द की ओर बढता रहता है। मनुष्य को विकास के अनुशार रुचि में परिष्कार तथा चिन्तन-शैली एवं जीवन और जगत् के प्रति दृष्टिकोण में परिवर्तन स्वतः होता रहता है। वास्तव में व्यक्ति के विकास एवं ह्रास का क्रम निरंतर चलता रहता है।
Bastiles of the Confederacy (Moran)
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Bastiles of the Confederacy: A Reply to Jefferson Davis (Baltimore: Printed
for the family of the author, ca. 1890), by Frank E. Moran (stable link)
19 hours ago
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