बहुत दिन पहले की बात है। एक छोटा-सा नगर था, पर उसमें रहने वाले लोग बड़े दिलवाले थे। ऐसे न्यारे नगर में चार मित्र रहते थे। वे छोटी उमर के थे, पर चारों में बड़ा मेल था। उनमें एक था। राजकुमार, दूसरा राजा के मंत्री का पुत्र, तीसरा सहूकार का लड़का और चौथा एक किसान का बेटा। चारों साथ-साथ खाते-पीते और खेलते-घूमते थे।
एक दिन किसान ने अपने पुत्र से कहा, “देखो बेटा, तुम्हारे तीनों साथी धनवान हैं और हम गरीब हैं। भला धरती और आसमान का क्या मेल !”
लड़का बोला, “नहीं पिताजी, मैं उनका साथ नहीं छोड़ सकता। बेशक यह घर छोड़ सकता हूं।”
बाप यह सुनकर आग-बबूला हो गया और लड़के को तुरंत घर छोड़ जाने की अज्ञा दी। लड़के ने भी राम की भांति अपने पिता की अज्ञा शिरोधार्य कर ली और सीधा अपने मित्रो के पास पहुंचा। उन्हें सारी बात बताई। सबने तय किया कि हम भी अपना-अपना घर छोड़कर मित्र के साथ जायंगे। इसके बाद सबने अपने घर और गांव से विदा ले ली और वन की ओर चल पड़े।
धीरे-धीरे सूरज पश्चिम के समुन्दर में डूबता गया और धरती पर अंधेरा छाने लगा। चारों वन से गुजर रहे थे। काली रात थी। वन में तरह-तरह की आवाजें सुनकर सब डरने लगे। उनके पेट में भूख के मारे चूहे दौड़ रहे थे। किसान के पुत्र ने देखा, एक पेड़ के नीचे बहुत-से जुगनू चमक रहे हैं।वह अपने साथियों को वहां ले गया और उन्हें पेड़ के नीचे सोने के लिए कहा। तीनों को थका-मांदा देखकर उसका दिल भर गया। बोला, “तुम लोगों ने मेरी खातिर नाहक यह मुसीबत मोल ली।”
सबने उसे धीरज बंधाया और कहा, “नहीं-नहीं, यह कैसे हो सकता है कि हमारा एक साथी भूखा-प्यासा भटकता रहे और हम अपने-अपने घरों में मौज उड़ायें। जीयेंगे तो साथ-साथ, मरेंगे तो साथ-साथ।”
थोड़ी देर बाद वे तीनों सो गये, पर किसान के लड़के की आंख में नींद कहां! उसने भगवान से प्रार्थना की, “हे भगवान ! अगर तू सचमुच कहीं है तो मेरी पुकार सुनकर आ जा और मेरी मदद कर।”
उसकी पुकार सुनकर भगवान एक बूढ़े के रूप में वहां आ गये। लड़के से कहा, “मांग ले, जो कुछ मांगना है। यह देख, इस थैली में हीरे-जवाहरात भरे हैं।”
लड़के ने कहा, “नहीं, मुझे हीरे नहीं चाहिए। मेरे मित्र भूखे हैं। उन्हें कुछ खाने को दे दो।”
भगवान ने कहा, “मैं तुम्हें भेद की एक बात बताता हूं। वह जो सामने पेड़ है न....आम का, उस पर चार आम लगे हैं-एक पूरा पका हुआ, दूसरा उससे कुछ कम पका हुआ, तीसरा उससे कम पका हुआ और चौथा कच्चा।”
“इसमें भेद की कौन-सी बात ?” लड़के ने पूछा।
भगवान ने कहा, “ये चारों आम तुम लोग खाओ। तुममें से जो पहला आम खायगा, वह राजा बन जायगा। दूसरा आम खाने वाला राजा का मंत्री बन जायगा। जो तीसरा आम खायगा, उसके मुंह से हीरे निकलेंगे और चौथा आम खानेवाले को उमर कैद की सजा भोगनी पड़ेगी।” इतना कहकर बूढ़ा आंख से ओझल हो गया।
तड़के सब उठे तो किसान के पुत्र ने कहा, “सब मुंह धो लो।” फिर उसने कच्चा आम अपने लिए रख लिया और बाकी आम उनको खाने के लिए दे दिये।
सबने आम खा लिये। पेट को कुछ आराम पहुंचा तो सब वहां से चल पड़े। रास्ते में एक कुआं दिखाई दिया। काफी देर तक चलते रहने से सबको फिर से भूख-प्यास लग आई। इसिलिए वे पानी पीने लगे। राजकुमार ने मुंह धोने के इरादे से पानी पिया और फिर थूक दिया तो उसके मुंह से तीन हीरे निकल आये। उसे हीरे की परख थी। उसने चुपचाप हीरे अपनी जेब में रख लिए।
दूसरे दिन सुबह एक राजधानी में पहुंचने के बाद उसने एक हीरा निकालकर मंत्री के पुत्र को दिया और खाने के लिए कुछ ले आने को कहा।
वह हीरा लेकर बाजार पहुंचा ता देतखता क्या है कि रास्ते में बहुत-से लोग जमा हो गये हैं। कन्धे-से-कन्धा ठिल रहा है। गाजे-बाजे के साथ एक हाथी आ रहा है। उसने एक आदमी से पूछा, “क्यों भाई, यह शोर कैसा है ?”
“अरे, तुम्हें नहीं मालूम ?” उस आदमी ने विस्मय से कहा।
“नहीं तो।”
“यहां का राजा बिना संतान के मर गया है। राज के लिए राजा चाहिए। इसलिए इस हाथी को रास्ते में छोड़ा गया है। वही राजा चुनेगा।”
“सो कैसे ?”
“हाथी की सूंड में वह फल-माला देख रहे हो न ?”
“हां-हां।”
“हाथी जिसके गले में यह माला डालेगा, वही हमारा राजा बन जायगा। देखो, वह हाथी इसी ओर आ रहा है। एक तरफ हट जाओ।”
लड़का रास्ते के एक ओर हटकर खड़ा हो गया। हाथी ने उसके पास आकर अचानक उसी के गले में माला डाल दी। इसी प्रकार मंत्री का पुत्र राजा बन गया। उसने पूरा पका हुआ आम जो खाया था। वह राजवैभव में अपने सभी मित्रों को भूल गया।
बहुत समय बीतने पर भी वह नहीं लौटा, यह देखकर राजकुमार ने दूसरा हीरा निकाला और साहूकार के पुत्र को देकर कुछ लाने को कहा। वह हीरा लेकर बाजार पहुंचा। राज को राजा मिल गया था, पर मंत्री के अभाव की पूर्ति करनी थी, इसलिए हाथी को माला देकर दुबारा भेजा गया। किस्मत की बात ! अब हाथी नेएक दुकान के पास खड़े साहूकार के पुत्र को ही माला पहनाई। वह मंत्री बन गया और दोस्तों को भूल गया।
इधर राजकुमार और किसान के लड़के का भूख के मारे बुरा हाल हो रहा था। अब क्या करें ? फिर किसान के पुत्र ने कहा, “अब मैं ही खाने की कोई चीज ले आता हूं।”
राजकुमार ने बचा हुआ तीसरा हीरा उसे सौंप दिया। वह एक दुकान में गया। खाने की चीजें लेकर उसने अपने पास वाला हीरा दुकानदार की हथेली पर रख दिया। फटेहाल लड़के केपास कीमती हीरा देखकर दुकानदार को शक हुआ कि, हो न हो, इस लड़के ने जरूर ही यह हीरा राजमहल से चुराया होगा। उसने तुरंत पुलिस के सिपाहियों को बुलाया। सिपाही आये। उन्होंने किसानके लड़के की एक न सुनी और उसे गिरफतार कर लिया। दूसरे दिनउेस उमर कैद की सजा सुनाई गई। यह प्रताप था कच्चे आम का।
बेचारा राजकुमार मारे चिंता के परेशान था। वह सोचने लगा, यह बड़ा विचित्र नगर है। मेरा एक भी मित्र वापस नहीं आया। ऐसे नगर में न रहना ही अच्छा। वह दौड़ता हुआ वहां से निकला और दूसरे गांव के पास पहुंचा। रास्ते में उसे एक किसान किला, जो सिर पर रोटी की पोटली रखे अपने घर लौट रहा था। किसाननेउसे अपने साथ ले लिया और भोजन के लिए अपने घर ले गया।
किसान के घर पहुंचने के बाद राजकुमार ने देखा कि किसान की हालत बड़ी खराब है। किसान ने उसे अच्छी तरह नहलाया और कहा, मैं गांव का मुखिया था। रोज तीन करोड़ लोगों को दान देता था, पर अब कौड़ी-कौड़ी के लिए मोहताज हूं।
राजकुमार बड़ा भूखा था, उसने जो रूखी-सूखी रोटी मिली, वह खा ली। दूसरे दिन सुबह उठने के बाद जब उसने मुंह धोया तो फिर मुंह से तीन हीरे निकले। वे हीरे उसने किसान को दे दिये। किसान फिर धनवान बन गया और उसने तीन करोड़ का दान फिर से आरम्भ कर दिया। राजकुमार वहीं रहने लगा और किसान भी उससे पुत्रवत् प्रेम करने लगा।
किसान के खेत में काम करने वाली एक औरत से यह सुख नहीं देखा गया। उसने एक वेश्या को सारी बात सुनाकर कहा, “उस लड़के को भगाकर ले आओ तो तुम्हें इतना धन मिलेगा कि जिन्दगी भर चैन की बंसी बजाती रहोगी।” अब वेश्या ने एक किसान-औरत का रूप रख लिया और किसान के घर जाकर कहा, “मैं इसकी मां हूं। यह दुलारा मेरी आंखों का तारा है। मैं इसके बिना कैसे ज सकूंगी ? इसे मेरे साथ भेज दो।” किसान को उसकी बात जंच गई। राजकुमार भी भुलावे में आकर उसके पीछे-पीछे चल दिया।
घर आने पर वेश्या ने राजकुमार को खूब शराब पिलाई। उसने सोचा, लड़का उल्टी करेगा तो बहुत-से हीरे एक साथ निकल आयंगे। उसकी इच्छा के अनुसार लड़के को उल्टी हो गई। लेकिन हीरा एक भी नहीं निकला। क्रोधित होकर उसने राजकुमार को बहुत पीटा और उसे किसान के मकान के पीछे एक गडढे में डाल दिया।
राजकुमार बेहोश हो गया था। होश में आने पर उसने सोचा, अब किसानके घर जाना ठीक नहीं होगा, इसलिए उसने बदन पर राख मल ली और संन्यासी बनकर वहां से चल दिया।
रास्ते में उसे सोने की एक रस्सी पड़ी हुई दिखाई दी। जैसे ही उसने रस्सी उठाई, वह अचानक सुनहरे रंग का तोता बनगया। तभी आकाशवाणी हुई, “एक राजकुमारी नेप्रण किया है कि वह सुनहरे तोते के साथ ही ब्याह करेगी।”
अब तोता मुक्त रूप से आसमान में उड़ता हुआ देश-देश की सैर करने लगा। होते-होते एक दिन वहउसी राजमहल के पास पहुंचा, जहां की राजकुमारी दिन-रात सुनहरे तोते की राह देख रही थी और दिन-ब-दिन दुबली होती जा रही थी। उसने राजा से कहा, “मैं इस सुनहरे तोते के साथ ही ब्याह करूंगी।” राजा को बड़ा दु:ख हुआ कि ऐसी सुन्दर राजकुमारी एक तोते के साथ ब्याह करेगी! पर उसकी एक न चली। आखिर सुनहरे तोते के साथ राजकुमारी का ब्याह हो गया। ब्याह होत ही तोता सुन्दरराजकुमार बन गया। यह देखकर राजा खुशी से झूम उठा। उसने अपनी पुत्री को अपार सम्पत्ति, नौकर-चकर, घोड़े और हाथी भेंट-स्वरूप दिये। आधा राज्य भी दे दिया।
नये राजा-रानी अपने घर जाने निकले। राजा पहले गांव के मुखिया किसानसे मिलने गया, जो फिर गरीब बन गया था। राजा ने उसे काफी संपत्ति दी, जिससे उसका तीन करोड़ का दान-कार्य फिर से चालू हो गया।
अब राजकुमार को अपने मित्रों की याद आई। उसने पड़ोस के राज्य की राजधानी पर हमला करने की घोषणा की, पर लड़ाई आरंभ होने से पहले ही उस राज्य का राजा अपने सरदारों-मुसाहिबों सहित राजकुमार से मिलने आया। उसने अपना राज्य राजकुमार के हवाले करने की तैयारी बताई। राजा की आवाज से राजकुमार ने उसे पहचान लिया और उससे कहा, “क्यों मित्र, तुमने मुझे पहचाना नहीं?” दोनों ने एक-दूसरे को पहचना तो दोनों की खुशी का ठिकाना नहीं रहा। अब दोनों ने मिलकर अपने साथी, किसान केपुत्र को खोजना आरम्भ किया। राजकुमार को यह बात खलने लगी कि उसकी खातिर मित्र को कारावास भुगतना पड़ा। जब सब कैदियों को रिहा किया गया तो उनमें किसान का लड़का मिलगया। राजकुमार ने उसका आलिंगन किया और अपना परिचय दिया। किसान का लड़का खुशी से उछल पड़ा। सब फिर से इकट्ठे हो गए।
इसके बाद सबने अपनी-अपनी सम्पत्ति एकत्र की और उसके चार बराबर हिस्से किए। सबको एक-एक हिस्सा दे दिया गया। सब अपने गांव वापस आ गये। माता-पिता से मिले। गांव भर में खुशी की लहर दौड़ गई सबके दिन सुख से बीतने लगे।
A Memoir of the Very Rev. Theobald Mathew; With an Account of the Rise and
Progress of Temperance in Ireland (Birmingham)
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A Memoir of the Very Rev. Theobald Mathew; With an Account of the Rise and
Progress of Temperance in Ireland (with Morris's "The Evil Effects of
Drunkennes...
10 hours ago
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