एक था बनिया। उसे घी खरीदना था, इसलिए वह घी की कुप्पी और तेरह रूपए लेकर दूसरे गांव जानेके लिए रवाना हुआ। रास्ते मे शाम हो गई। जहां पहुचना था, वह गांव दूर था। थोड़ी ही देर मे अंधेरा छा गया।
बनिये ने अंधेरे मे दूर कुछ देखा। उसके मन मे शक पैदा हुआ कि कहीं कोई चोर तो नहीं है! बनिया डर गया पर आख़िर वह बनिया था।
वह खांसा-खंखारा, मूंछ पर ताव दिया और बोला:
अगर तू है खूटा खम्बा।
तो मै हूं मरद मुछन्दर।
अगर तू है चोर और डाकू।
तो ले ये तेरह रूपए और कुप्पी धर।
बनिया यूं बोलता जाता था, खासंता-खंखारता जाता था, और धीमे-धीमे आगे बढ़ता जाता था।
जब बिल्कुल पास पहुंच गया, तो देखा कि वहां तो पेड़ का एक ठंठ खड़ा था। बनिये ने चैन की सांस ली।•
A Memoir of the Very Rev. Theobald Mathew; With an Account of the Rise and
Progress of Temperance in Ireland (Birmingham)
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A Memoir of the Very Rev. Theobald Mathew; With an Account of the Rise and
Progress of Temperance in Ireland (with Morris's "The Evil Effects of
Drunkennes...
11 hours ago
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