दो मित्र थे। एक ब्राह्राण था, दूसरा भाट। भाट ने एक दिन अपने मित्र से कहा, “चलो, राजा के दरबार में चलें। यदि गोपाल राजा खुश हो गया तो हमारे भाग्य खुल जायेंगे।”
ब्राह्राण ने हंसकर उसकी बात टालते हुए कहा, “देगा तो कपाल, क्या करेगा गोपाल ? भागय में होगा, वही मिलेगा।”
भाट ने कहा, “नहीं, देगा तो गोपाल, क्या करेगा कपाल ! गापाल राजा बड़ा दानी है, वह हमें अवश्य बहुत धन देगा।”
दोनों में इस प्रकार विवाद होता रहा और अंत में गोपाल राजा के दरबार में जाकर दोनों ने अपनी-अपनी बात कही। भाट की बात सुनकर राजा प्रसन्न हुआ। ब्राह्राण की बात सुनकर उसे क्रोध आया। उसने दोनों को दूसरे दिन दरबार में आने की आज्ञा दी।
दोनों मित्र दूसरे दिन दरबार में पहुंचे। राजा की आज्ञा से उसके सिपाहियों ने ब्रह्राण को एक मुटठी चावल तथा एक मुटठी दाल और कुछ नमक दे दिया। भाट को एक सेर चावल, एक सेर घी और कद्दू दिया। राजा के आदेश से कद्दू में सोना भर दिया गया। राजा ने कहा, “अब जाकर बना-खा लो। शाम को फिर दरबार में हाजिर होना।”
दरबार से चलकर वे नदी किनारे के उस स्थान पर पहुंचे, जहां उन्होंने रात बिताई थी। भाट मन-ही-मन सोच रहा था-“न जाने क्यों, राजा ने ब्राह्राण कोतो दाल दी, और मुझे यह कद्दू दे दिया। इसे छीलो, काटो और फिर बनाओ इसकी तरकारी। कौन करे इतना झंझट ? ऊपर से यह भी डर है कि कहीं सके खाने से फिर से कमर का पुराना दर्द न उभर आए।” ऐसा सोचकर उसने ब्राह्राण से कहा, “मित्र, कद्दू खाने से मरी कमर में दर्द हो जायेगा, इसे लेकर तुम अपनी दाल मुझे दे दो।” ब्राह्राण नेउसकी बात मान ली। अपना-अपना सामान लेकर दोनों रसोई में जुट गये। भाट दाल-चावल खाकर एक आम के पेड़ के नीचे सो गया। ब्राह्राण ने जब कद्दू काटा तो उसे वह सोना दिखाई दिया, जो राजा ने उसमें भरवा दिया था। उसने मन-ही-मन सोचा, “मेरे भाग्य में था, मेरे पास आ गया। गोपाल तो इसे भाट को देना चाहता था, उसने सोना एक कपड़े में बांध लिया। कद्दू का आधा भाग बचाकर आधे की तरकारी बना ली। वह भी खा-पीकर सो गया।
संध्या के समय दोनों मित्र फिर गोपाल राजा के दरबार में पहुंचे। ब्राह्राण ने शेष आध कद्दू एक कपड़े में लपेटकर अपने पास ही रख लिया था। राजा ने ब्राह्राणीकी ओर देखकर पूछा, “अब तो मान लिया, देगा तो गोपाल, क्या करेगा कापाल? ”
ब्राह्राण ने आधा कद्दू राजा की ओर बढ़ा दिया और नम्रता से सिर झुकाकर कहा, “नहीं माहाराज, देगा तो कपाल, क्या करेगा गोपाल ?”
राजा ने सोचा कि ब्राह्राण सच कह रहा है। ब्राह्राण के भाग्य में सोना था, भाट के नहीं और इसीलिए भाट ने कद्दू ब्राह्राण को दे दिया। राजा ने कहा, “तुम्हारा कहना ही ठीक है। देगा तो कपाल, क्या करेगा गोपाल ?”
उसने दोनों को भेंट में धन देकर विदा कर दिया। □
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Back of War (Garden City, NY: Doubleday, Doran and Co., 1928), by Henry
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16 hours ago
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