एक थी सोनबाई। बड़ी सुन्दर थी। एक बार सोनबाई अपनी सहेलियों के साथ मिट्टी लेने गई। जहां सोनबाई खोदती, वहां सोना निकलता और जहां उसकी सहेलियां खोदतीं, वहां मिट्टी निकलती। यह देखकर सब सहेलियों के मन में सोनबाई के लिए ईर्ष्या पैदा हो गई। सब सहेलियों ने अपना-अपना टोकरा सिर पर उठाया और सोनबाई को अकेली ही छोड़कर चली गईं।
सोनबाई ने अकेले-अकेले अपना टोकरा अपने सिर पर रखने की बहुत कोशिश की, पर वह टोकरे को किसी भी तरह चढ़ा नहीं पाई। इसी बीच उधर से एक बगुला निकला।
सोनबाई ने कहा, "बगुला भाई, बगुला भाई! यह टोकरा मेरे सिर पर रखवा दो।"
बगुला बोला, "अगर तुम मुझसे ब्याह कर लो, तो मैं यह टोकरा सिर पर रखवा दूं।" सोनबाई ने "हां" कहा और बगुले ने टोकरा सिर पर रखवा दिया। टोकरा लेकर सोनबाई अपने घर की तरफ चली। बगुला उसके पीछे-पीछे चला। घर पहुंचकर सोनबाई ने अपनी मां से सारी बात कह दी।
मां ने कहा, "अब तुम घर के बाहर कहीं जाना ही मत। बाहर जाओगी, तो बगुला तुमको ले भागेगा।"
बाहर खड़े हुए बगुले ने यह बात सुन ली। उसको बहुत गुस्सा आया। उसने सब बगुलों को बुला लिया और उनसे कहा, "इस नदी का सारा पानी पी डालो।" इतना सुनते ही सारे बगुले पानी पीने लगे और थोड़ी ही देर में नदी सूख गई।
दूसरे दिन जब सोनबाई के पिता अपनी भैंसों को पानी पिलाने के लिए नदी पर पहुंचे, तो देखा कि नदी में तो कंकर-ही-कंकर रह गए हैं! उन्होंने नदी के किनारे खड़े हुए बगुले से कहा:
पानी छोड़ो बगुले भैया!
पानी छोड़ो बगुले भैया!
घुड़साल में घोड़े प्यासे हैं।
नोहरे में गायें प्यासी हैं।
बगुले ने कहा, "अपनी बेटी सोनबाई का ब्याह आप मुझसे कर देंगे तो मैं पानी छोड़ दूंगा।"
सोनबाई के पिता ने बगुले की बात मान ली, और बगुले ने नदी में पानी छोड़ दिया। नदी फिर पहले की तरह कल-कल, छल-छल करके बहने लगी।
सोनबाई का ब्याह बगुले के साथ हो गया। सोनबाई को अपने पंखों पर बैठाकर बगुला उसे अपने घर ले आया। फिर सोनबाई और बगुला दोनों एक साथ रहने लगे। बगुला स्वयं दाना चुग आता था और अपने साथ सोनबाई के लिए भी दाना ले आता था।
ऐसा होते-होते एक दिन सोनबाई के एक लड़का हुआ। सोनबाई की खुशी का कोई ठिकाना न रहा!
एक दिन सोनबाई के पिता ने सोचा—किसी को भेजकर पता तो लगवाऊं कि सोनबाई के भाई को भेजा। भाई सोनबाई के पास पहुंचा। भाई-बहन दोनों मिले खूब खुश हुए। इतने में बगुले के चुगकर वापस आने का समय हो गया।
सोनबाई ने कहा, "भैया! तुम रजाइयों वाली इस कोठरी में छिप जाओ। बगुला ऐसा खूंखार है कि तुमको देख लेगा, तो मार डालेगा।"
भाई कोठरी में छिप गया। सोनबाई ने दो पिल्ले पाल रखे थे। उनमें से एक को चक्की के नीचे छिपा दिया और दूसरे को झाड़ू से बांधकर घर में रखा। फिर वह दरवाजे के पास जाकर उसकी आड़ में बैठ गयी। इसी बीच बगुला आया और बोला, "दरवाज़ा खोलो।"
सोनबाई तो कुछ बोली नहीं, लेकिन सोनबाई का लड़का बोला:
बाबा, बाबा!
मामा छिपे हैं कोठरी में।
छोटा पिल्ला बैठा है चक्की के नीचे।
बड़ा पिल्ला बंधा है झाड़ू से।
बाहर खड़ा बगुला बोला, "सोनबाई! यह मुन्ना क्या कह रहा है?"
सोनबाई ने कहा, "यह तो योंही बड़-बड़ कर रहा है।"
इतने में लड़का फिर बोला:
बाबा, बाबा!
मामा छिपे हैं कोठरी में।
छोटा पिल्ला बैठा है चक्की के नीचे।
बड़ा पिल्ला बंधा है झाड़ू से।
बगुला बोला, "दरवाजा खोलो।" लेकिन सोनबाई ने दरवाजा नहीं खोला। बगुला फिर चुगने चला गया।
बाद में मामा मायके कोठरी से बाहर निकला और सोनबाई अपने लड़के को लेकर उसके मायके चली गयी। जब बगुला घर लौटा,तो उसने देखा, वहां कोई नहीं है।
The Pope, Chief of White Slavers, High Priest of Intrigue (Crowley)
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The Pope, Chief of White Slavers, High Priest of Intrigue (Aurora, MO:
Menace Pub. Co., c1913), by Jeremiah J. Crowley (stable link)
21 hours ago
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