जीवन मे जहां एक ओर कुछ आदर्शों और मूल्यों की प्रस्थापना करके उनसे प्रेरणा लेते रहना महत्वपूर्ण है, वहाँ दूसरी ओर जन-समाज की गतिविधि से अवगत रहकर उस पर विचार करना भी आवश्यक है क्योंकि मनुष्य को जीवन के अन्त तक जन-समाज मे ही जीवन-यापन करना होता है। समाज के विचारों तथा समाज की घटनाओं का व्यक्तित्व के जीवन पर सुदूरगामी प्रभाव होता है। मनुष्य सामाजिक, धार्मिक और राजनीतिक घटनाओं के प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष प्रभाव से अछूता नहीं रह सकता। अतएव मनुष्य को जन-समाज की समस्त घटनाओं पर चिन्तन करते हुए उनके प्रति अपने दृष्टिकोण को स्पष्ट एवं सुनिश्चित कर लेना चाहिए तथा अपने चिन्तन, स्वभाव, सामर्थ्य, क्षमता दायित्व और अपनी परिस्थितियों पर गंभीरतापूर्वक विचार करके ही प्रतिक्रिया करना चाहिए। मनुष्य जिस सीमा तक स्वयं को, जन-समाज को तथा सांसारिक घटनाओं को समझ सकेगा, उसी सीमा तक अपने जीवन में सन्तुलन रख सकेगा तथा समस्याओं का विवेकपूर्वक समाधान कर सकेगा। मनुष्य के जीवन के विविध क्षेत्रों में आधुनिकता के लाभ, हानि और प्रभाव को समझकर ही आधुनिक युग से ठीक प्रकार से तालमेल स्थापित कर सकता है। यद्यपि प्रत्येक मनुष्य को अपनी सुविचारित धारणाओं एवं मान्यताओं के अनुरूप ही जीवन शैली अपनाकर साहसपूर्वक जीवन-निर्वाह करना तथापि विवेकशील पुरुष देश, काल और परिस्थिति को समझकर आचरण करता है। यह जीवन का व्यावहारिक पक्ष है।
हम प्रत्येक क्षण अपने को सबल एवं सुखी अथवा दुर्बल एवं दुखी बनाते रहते हैं. अतएव यह जान लेना आवश्यक है कि किन गुणों से हमारी शक्ति और शान्ति का पोषण हो रहा है तथा किन दोषों से उनका ह्वास हो रहा है। यह जानकर हम अपने सम्बन्ध में कुछ निर्णय और निश्चय कर सकते हैं।
जीवन को उल्लासमय बनाने के लिए हमें ऐसी जीवन-शैली को अपनाना चाहिए जिसमें विवेक की प्रधानता हो तथा हमारे कार्य-कलाप से जीवन में रसमयता का समावेश हो जाए। विवेक का अर्थ है चिन्तन और अनुभव पर आधरित हमारी समझदारी अथवा सूझ-बूझ। केवल बुद्धि होना तथा अध्ययन करना पर्याप्त नहीं होता। विवेक बुद्धि का जागरण है अथवा एक ऐसा प्रकाश है जो भय, भ्रम, संशया, चिन्ता आदि के अन्धकार को दूर करके हमें आगे बढ़ने की क्षमता प्रदान करता है। अतएव हमारे लिए चिन्तन को तर्कपूर्ण विचार प्रक्रिया से पैना करते रहना नितान्त आवश्यक है। जीवन के प्रत्येक महत्त्वपूर्ण है। उचित दिशा में पुरुषार्थ एवं कर्म करने के लिए तथा उमंगभरा जीवन बिताने के लिए मानव के जीवन में चिन्तन की प्रधानता एवं प्रमुखता निर्विवाद है। चिन्तनरहित पुरुषार्थ करनेवाला मनुष्य न केवल पग-पग पर ठोकरें खाता है, बल्कि दुखी भी रहता है तथा चिन्तनसहित पुरुषार्थ करनेवाला मनुष्य न केवल कुछ ठोस उपलब्धि प्राप्त कर लेता है, बल्कि सदा सुखी भी रहता है।
Back of War (Norton)
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Back of War (Garden City, NY: Doubleday, Doran and Co., 1928), by Henry
Kittredge Norton (stable link)
16 hours ago
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