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Friday, June 26, 2009

६/ फूट बुरी बला

एक माली ने देखा कि उसके बाग में तीन आदमी चोरों की तरह बिना पूछे घुस आये हैं। उनमें से एक सैयद है, एक सूफी है और एक मौलवी है, और एक से बढ़कर एक उद्दंड और गुस्ताख है। उसने अपने मन में कहा कि ऐसे धूर्तों को दंड देना ही चाहिए, परन्तु उनमें परस्पर बड़ा मेल है और एका ही सबसे बड़ी शक्ति है। मैं अकेला इन तीनों को नहीं जीत सकता। इसलिए बुद्धिमानी इसी में है कि पहले इनको एक-दूसरे से अलग कर दूं। यह सोचकर उसने पहले सूफी से कहा, ‘‘हजरात, आप मेरे घर जाइए और इन साथियां के लिए कम्बल ले आइए।’’ जब सूफी कुछ दूर गया, तो कहने लगा, ‘‘क्यों श्रीमान! आप तो धर्म-शास्त्र के विद्वान हैं और ये सैयद हैं। हम तुम-जैसे सज्जनों के प्रताप से ही रोटी खाते हैं और तुम्हारी समझ के परों पर उड़ते हैं। दूसरे पुरुष हमारे बादशाह हैं, क्योंकि सैयद हैं और हमारे रसूल के वंश के हैं। लेकिन इस पेटू सूफी में कौन-सा गुण है, जो तुम-जैसे बादशाहों के संग रहे? अगर वह वापस आये तो उसे रुई की तरह धुन डालूं। तुम लोग एक हफ्ते तक मेरे बाग में निवास करो। बाग ही क्या, मेरी जान भी तुम्हारे लिए हाजिर हैं, बल्कि तुम तो मेरी दाहिनी आंख हो।’’
ऐसी चिकनी-चुपड़ी बातों से इनको रिझाया और खुद डंडा लेकर सूफी के पीछे चला और उसे पकड़कर कहा, ‘‘क्यों रे सूफी, तू निर्लल्जता से बिना आज्ञा लिये लोगों के बाग में घुस आता है! यह तरीका तुझको किसने सिखाया है? बता, सिक शेख और किस पीर ने आज्ञा दी?’’ यह कहकर सूफी को मारते-मारते अधमर कर दिया।
सूफी ने जी में कहा, ‘‘जो कुछ मेरे साथ होनी थी, वह तो हो चुकी; परन्तु मेरे साथियो! जरा अपनी खबर लो। तुमने मुझको पराया समझा, हालांकि मैं इस दुष्ट माली से ज्यादा पराया न था। जो कुछ मैंने खाया है, वही तुम्हें भी खाना है और सच बात तो यह है कि धूर्तों को ऐसा दण्ड मिलना चाहिए।’’
जब माली ने सूफी को ठीक कर दिया तो वैसा ही एक बहाना और ढूंढा और कहा, ‘‘ऐ मेरे प्यारे सैयद, आप मेरे घर पर तशरीफ ले जायें। मैंने आपके लिए बढ़िया खाना बनवाया है। मेरे दरवाजे पर जाकर दासी को आवाज देना। वह आपके लिए पूरियां और तरकारियां ला देगी।’’
जब उसकी विदा कर चुका तो मौलवी से कहने लगा, ‘‘ऐ महापुरुष! यह तो जाहिर और मुझे भी विश्वास है कि तू धर्म-शास्त्रों का ज्ञात है: परन्तु तेरे साथी को सैयदपने का दावा निराधार है। तुझे क्या मालूम, इसकी मां ने क्या-क्या किया?’’ इस प्रकार सैयद को जाने क्या-क्या बुरा भला कहा। मौलवी चुपचाप सुनता रहा, तब उस दुष्ट ने सैयद का भी पीछा किया और रास्ते में रोककर कहा, ‘‘अरे मूर्ख! इस बाग में तुझे किसने बुलाया? अगर तू नबी सन्तान होता तो यह कुकर्म न करता।’’
फिर उसने सैयद को पीटना शुरु किया और जब वह इस ज़ालिम की मार से बेहाल हो गया तो आंखों में आसूं भरकर मौलवी से बोला, ‘‘मियां, अब तुम्हारी बारी है। अकेले रह गये हो। तुम्हारी तोंद पर वह चोटी पड़गी कि नक्करा बन जायेगी। अगर मैं सैयद नहीं हूं और तेरे साथ रहने योग्य नहीं हूं तो ऐसे ज़ालिम से तो बुरा नहीं हूं।’’
इधर जब वह माली सैयद से भी निबटन चुका तो मौलवी की ओर मुड़ा और कहा, ‘‘ऐ मौलवी,! तू सारे धूर्तों का सरदार है। खुदा तुझे लुंजा करे। क्या तेरा यह फतवा है कि किसी के बाग में घुस आये और आज्ञा भी न ले? अरे मूर्ख, ऐसा करने की तुझे किसने आज्ञा दी है? या किसी धार्मिक ग्रन्थ में तूने ऐसा पढ़ा है?’’ इतना कहकर वह उस पर टूट पड़ा और उसे इतना मारा कि उसका कचूमर निकाल दिया।
मौलवी ने कहा, ‘‘तुझे निस्सन्देह मारने का अधिकार है। कोई कसर उठा न रखा। जो अपनों से अलग हो जाये, उसकी यही सजा है। इतना ही नहीं, बल्कि इससे भी सौगुना दण्ड मिलना चाहिए। मैं अपने निजी बचाव के लिए अपने साथियों से क्यों अलग हुआ?’’
[जो अपने साथियों से अलग होकर अकेला रह जाता है, उसे ऐसी ही मुसीबतें उठानी पड़ती हैं। फूट बला है।]

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