चीनियों को अपनी चित्रकला पर घमंड था और रुमियों को अपने हुनर पर गर्व था। सुलतान ने आज्ञा दी कि मैं तुम दोनों की परीक्षा करुंगा। चीनियों ने कहा, ‘‘बहुत अच्छा, हम अपना हुनर दिखायेंगे।’’ रुमियों ने कहा, ‘‘हम अपना कमाल दिखायेंगे।’’ मतलब यह कि चीनी और रुमियों में अपनी-अपनी कला दिखाने के लिए होड़ लग गई।
चीनियों ने रुमियों से कहा, ‘‘अच्छा, एक कमरा हम ले लें और एक तुम ले लो।’’ दो कमरे आमने-सामने थे। इनमें एक चीनियों को मिला और दूसरा रुमियों कों चीनियों ने सैकड़ों तरह के रंग मांगें बादशाह ने खजाने का दरवाज खोल दिया। चीनियों को मुंह मांगे रंग मिलने लगे। रुमियों ने कहा, ‘‘हम न तो कोई चित्र बनाएंगे और न रंग लगायेगे, बल्कि अपना हुनर इस तरह दिखायेंगे कि पिछला रंग भी बाकी न रहें।’’
उन्हों दरवाजे बन्द करके दीवारों को रगड़ना शुरु किया और आकाश की तरह बिल्कुल और साफ सादा घाटा कर डाला। उधर चीनी अपना काम पूरा करके खुशी के कारण उछलने लगे।
बादशाह ने आकर चीनियों का काम देखा और उनकी अदभुत चित्रकारी को देखकर आश्चर्य-चकित रह गया। इसके पश्चात वह रुमियों की तरफ आया। उन्होंने अपने काम पर से पर्दा उठाया। चीनियों के चित्रों का प्रतिबिम्ब इन घुटी हुई दीवार इतनी सुन्दर मालूम हुई कि देखनेवालों कि आंखें चौंधिसयाने लगीं।
[रूमियां की उपमा उन ईश्वर-भक्त सूफियों की-सी है, जिन्होंने न तो धार्मिक पुस्तकें पढ़ी और न किसी अन्य विद्या या कला में योग्यता प्राप्त की है। लेकिन लोभ, द्वेष, दुर्गुणों को दूर करके अपने हृदय को रगड़कर, इस तरह साफ कर लिया है कि उसके दिल स्वच्छ शीशें की तरह उज्जवल हो गये है।, जिनमें निराकार ईश्चरीय ज्योति का प्रतिबिम्ब स्पष्ट झलकता है।]1
Back of War (Norton)
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Back of War (Garden City, NY: Doubleday, Doran and Co., 1928), by Henry
Kittredge Norton (stable link)
17 hours ago
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