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Thursday, February 19, 2015

आनन्दमय जीवन by शिवानन्द


जीवन इस सृष्टि का सबसे बड़ा चमत्कार है। जीवन पाकर असंख्य पक्षी विशाल व्योम में पंख फैलाकर उड़ते हैं और आनन्दमय होकर कलवर करते हैं। जीवन का स्फृरण होने पर ही अगणित पशु वनों में विहार करते हैं। और वन की शोभा बन जाते हैं। जीवन-स्फुरण से उल्लसित होकर ही कोटि-कोटि जलचर जल में विचरण करते हैं तथा सागरों की श्रीवृद्धि करते हैं।
जीवन सृष्टि का सर्वोतम धन है तथा अनुपम तत्व है। यदि जीवनधारी प्राणी न हों तो इस विशाल सृष्टि में जल, थल और नभ की उपादेयता ही क्या रहेगी ? सृष्टि जीवन का अस्तित्व होने के कारण ही कृतार्थ है। जीवन से बढ़कर कहीं भी कुछ और गौरवमय नहीं है।
सृष्टि के श्रृंगारभूत मानव को यह सौभाग्य मिला है कि जीवन उसके माध्यम से ही चरमोत्कर्ष को प्राप्त हसे सका तथा वह जल, थल और नभ पर शासन करने में समर्थ हो गया। प्रकृति नटी मानव की रचना द्वारा कृत-कृत्य हुई। मानव ने बुद्धिमता से प्रकृति के मूलभूत तत्वों तथा जीवन के रहस्यों की खोज में सलंग्न होकर अपनी अस्मिता को प्रतिष्ठि कर दिया। मानव ने बौद्धिक शक्ति के द्वारा विज्ञान और दर्शन की असीमराशि का संचय किया, सौन्दर्यबोध, संवेदनशीलता और कल्पना-शक्ति के द्वारा साहित्य एंव विविध कलाओं का सर्जन किया, करुणार्द्रता रहस्मय दिव्य वृति के द्वारा अनेक धर्मों को उदभूत किया। समस्त संस्कृति और सभ्यता का प्रादुर्भाव मानव की बुद्धि के आधार पर ही हुआ है। मानव ने संस्कृति और सभ्यता के विकास द्वारा जीवन में सौन्दर्य समावेश कर दिया है।
जीवन एक परम सुन्दर एंव परम भव्य ततव हैं। जीवन की संरक्षा तथा जीवन का सौन्दर्यीकरण करना मानव का न केवल दायित्व है बल्कि उसकी एक गहरी मांग भी है। ज्ञान, विज्ञान, दर्शन, कला, साहित्य इत्यादि विविध क्षेत्रों में जीवन को सुन्दर एंव भव्य बनाने का प्रयत्न करनेवाले मनुष्यों के प्रति समस्त मानव-जाति ऋणी है। अनन्त है मानव-जीवन का आकर्षण और अनन्त है उसकी भव्यता।
वास्तव में समस्त सृष्टि सौन्दर्य से परिपूर्ण है तथा मानव-जीवन में आकर्षण और भव्यता का कोई अन्त नहीं है। प्रकृति ने मनुष्य को अपना जीवन संवार कर उसे सौन्दर्य से भरपूर करने की अनन्त क्षमता भी दी है। जीवन अनमोल है और उल्लासमय एंव भव्य होने की असीम संभावनाओं से भरा पड़ा है। मनुष्य और जन-समाज इस धराधाम को जीता-जागता स्वर्ग बना सकते हैं। जीवन एक ऐसा दुर्लभ तत्व है कि वैज्ञानिकों के अथक प्रयास होने पर भी उन्हें पृथ्वी के अतिरिक्त इस विशाल विश्व में कहीं किसी अन्य ग्रह पर जीवन का अस्तित्व होने के लक्षण अभी तक नहीं मिले हैं। मनुष्य को यह विशेषाधिकार प्राप्त है कि वह जीवन के तथा सृष्टि के रहस्यों की खोज कर जीवन को समृद्ध बना सकता है।
जीवन सचमुच एक वरदान है, प्रकृति का अनुपम उपहार है जिसके बुद्धिसंगत उपयोग द्वारा मनुष्य उसे सार्थक एंव आनन्दमय बना सकता है। जीवन एक ऐसी निधि है जिसका अल्प सदुपयोग भी मनुष्य को गहन तृप्ति देकर धन्य बना सकता है किन्तु किसी अमूल्य हीरे का महत्व न समझकार अविवेकी मनुष्य दीन और दरिद्र रहकर दयनीय हो जाता है। अनएव प्रथम आवश्यकता है इस अप्रतिम जीवननिधि की महता जानने और समझने की तथा उसका सम्मान और सुरक्षा करने की।
इस संसार में केवल प्रकृति में ही आकर्षणों और सौन्दर्य-बिन्दुओं का सर्जन किया है। यदि हम तनिक नेत्र खोलकर देखें तो चारों ओर अनन्त चिताकर्षक एंव सौन्दर्यपूर्ण दृश्यावली की नयनाभिराम छटा दृष्टिगोचर होगी। कहीं प्राकृतिक शोभा के भण्डार, विशाल एंव विस्तीर्ण पर्वतों की ध्यानाविष्ट-सी शैलमाला हैं जिनके धवल हिमाच्छादित उच्च शिखर उदीयमान सूर्य की प्रखर रश्मियों के स्पर्श से उदभासित होकर स्वर्णिम प्रतीत होते हैं। कहीं वनों में विविध प्रकार के बृहद्काय एंव लघुकाय वृक्ष और विविध स्वादयुक्त फल, उपवनों में विविध प्रकार के रंग-बिरंगे पुष्पगुच्छ, कोमल लताओं के विस्तृत जाल और मदमत भ्रमरो का मधुर गुंजन तथा कहीं कलकल निनादिनी पयस्विनी नदियां, नद और निर्झर हमारे चित का हरण कर लेते हैं। कहीं दुग्धतुल्य श्वेत फेन से सुशोभित उताल तरंगों को असंख्य भुजाओं के सदृश निरन्तर उठाते और गिराते हुए अथाह समुद्रों में अनन्त प्रकार के जलचर तथा विलक्षण रत्न मन को मुग्ध कर देते हैं। उषाकालहन तथा अस्तकालीन ताम्रवर्ण सूर्य अत्यन्त मनोहारी प्रतीत होता है। नील गगन मे नाना आकृति धारण किये हुए श्वेत और श्याम मेघों की कलाएं अत्यन्त मनोरम दृश्य प्रस्तुत करती हैं। रात्रि के निरभ्र आकाश में असंख्य तारागण के मध्य में संचरण करता हुआ चारु चन्द्र चित का हरण कर लेता है।
मनुष्य ने भी अपनी सौन्दर्यप्रियता एंव सर्जकता से धरती पर अनोखे आश्चर्यों का प्रणयन किया है। कहीं मानवनिर्मित गगनचुम्बी भव्य सौध हैं, कहीं भिति, वस्त्र, कागज इत्यादि पर अंकित चित्र-विचित्र कला-कृतियां हैं, कहीं विविध रसों से सिक्त आह्लादकारी काव्य है, कहीं संगीत सरोवर की मादक गहराई हैं, तथा कहीं थिरकते पैरों का मनोमुग्धकारी नृत्य। इतिहास केवल रण क्षेत्र की शौर्यपूर्ण गाथाओं से ही नहीं बल्कि जीवन के विविध क्षेत्रों में मानव की साहसिक उपलब्धियों से भी भरा पड़ा है।
हमारे चारों ओर आकर्षण ही आकर्षण हैं। पारिवारिक जीवन की रसमयता, घनिष्ठ मित्रगण के मध्य परस्पर सलांप, मनोरंजक हास-परिहास, क्रीड़ामग्न बालकों की मृग्धकारी किलकररियां तथा उनके रुचिर हाव-भाव, क्रीड़ा प्रांगण में युवकों के स्पर्धापूर्ण खेल, शारीरिक करतब और साहसिक कार्य, एकान्त में स्नेहीजन का परस्पर प्रेमपूर्ण वार्तालाप एंव व्यवहार, रमणीय स्थलों का पर्यटन, प्राकृतिक सौंन्दर्य का रसास्वादन, ऐतिहासिक स्थलों का निरीक्षण, समाज में दीन-दुखीजन के दु:ख निवारण हेतु सेवाकार्य, तीर्थटन, भजन-कीर्तन, संत्संग इत्यादि मन को सुख और शान्ति देनेवाले अनेक क्रियाकलापा हैं। यह सृष्टि सौन्दर्य का अनन्त निधान है तथा जीवन भव्य आकर्षणों से परिपूर्ण है किन्तु मनुष्य अविवेक के कारण संसार को कष्टमय तथा जीवन को भारमय मान बैठता है। अपने जूते में चुभनेवाले कंकर या कांटा होने पर उसे निकाल फेंकने के बजाए मार्ग को कठिन कहना अपनी ही भूल है।
जीवन के आकर्षणपूर्ण तथा उपलब्धियों एंव अनान्द की अनन्त संभावानओं से भरपूर होने पर भी अगधित मनुष्य् मानसिक दाब एंव तनाव के कारण ह्रदयघातों से पीड़ित होते हैं तथा दु:ख एंव आश्चर्य तो यह है कि भयंकर ह्रदयाघातों का शिकार होनेवाले लोगों में तीस और चालीस वर्ष के बीच की आयुवाले तरुणों की संख्या तेजी से बढ़ती जा रही है और बड़े-बड़े नर्सिग होम और यद्यपि उनका उपचार तत्काल होना अत्यन्त आवश्यक होता है। नित्य-प्रति अगणित लोग अल्पायु मे ही सहसा ह्रदयाघात होने पर स्वयं भरपूर जीवन जीने से वंचित होकर तथा मित्रों एंव कुटुम्बीजन को रोता हुआ छोड़कर काजकवलित हो जाते हैं। अगणित लोग जीवन की किसी उलझन और कुचल देनेवाले भयानक बोझ कहते हुए उतेजनावश जीवनलीला का अन्त कर देते हैं। दु:खपूर्ण आश्वर्य तो यह है कि जीवनान्त कर देनेवाले ऐसे तरुणों की संख्या बढ़ती जा रही जो उच्च शिक्षा प्राप्त कर चुके होते हैं अथवा महत्वपूर्ण वैज्ञानिक खोज में संलग्न होते हैं।
जीवन एक अनजाने क्षेत्र में और अनजानी दिशा में यात्रा के सदृश है। मनुष्य यात्रा के साधनों को जानकर और उनको समझकर ही उसे सुखमय एंव सार्थक बना सकता है। कुशल यात्री अपने साधनों, रुचि और क्षमता को तथा यात्रा की संभावनाओं को समझकर यात्रा को रोमांचकारी और आनन्दपूर्ण बना सकता है तथा ज्ञान एंव अनुभव से युक्त होकर अन्य यात्रियों के लिए भी प्रेरणप्रद एंव उपयोगी हो सकता है।
जीवन में माधुर्य है, सरसता है और आनन्दमयता है। प्रकृति ने जीवन की अनन्त संभावनाओं को तथा संसार के आकर्षणों को सर्वसुलभ बनाया है तथा किसीके लिए भी निराश एंव हतोत्साह होने का कारण नहीं है। मनुष्य के जीवन में इतनी अधिक सामग्री देखने, सुनने, पढ़ने के लिए तथा इतना विशाल क्षेत्र कार्य
करने के लिए है कि जीवन की अवधि अत्यल्प एंव अपर्याप्त प्रतीत होती है। किन्तु खेद है कि मनुष्य भटक जाने के कारण जीवन-वरदान को अभिशाप तथा रमणीक संसार को भयावह स्थल मानकर न केवल अपने छोटे-से जीवन को ही बल्कि समाज के जीवन को भी तानवपूर्ण बना देता है। वास्तव में आवश्यकता है आन्तरिक स्वभाव एंव व्यवहार के परिष्कार की। विवेकशील व्यक्ति के लिए यह सरल है तथा विवेकहीन व्यक्ति के लिए कठिन।
मनुष्य न केवल दृश्यमान बाहय जगत् में जीता है, बल्कि अपने भीतर स्व-रचित मनोजगत् में भी जीता है। वास्तव में मनुष्य का सुख और दु:ख इस बहिर्रजगत् पर निर्भर नहीं होता बल्कि अपने अन्तर्मन पर निर्भर होता है। हमारे सुख का कारण संसार के अन्य व्यक्ति और वस्तु नहीं होते बल्कि हमारी वैचारिक और भावानात्म्क् क्रिया तथा प्रतिक्रिया ही हमारे सुख का कारण होती हैं। हमारी जीवन-शैली ऐसी चिन्तन-शैली के अनुरुप होनी चाहिए कि वह हमें भय, चिन्ता और शोक से मुक्त रख सके। अतएव हमें संकल्प लेकर अपने मनोजगत् में एक स्वस्थ चिन्तन-शैली के निर्माण करने का तथा बहिर्जगत् में उसके अनुरुप व्यवहार करने का प्रयत्न करना चाहिए।
इस युग की विडम्बना यह है कि आधुनिक मानव की दृष्टि में प्रगति एंव उन्नति का अर्थ केवल एक है—धनवान्, समृद्धिशील, ऐयवर्यशाली एंव वैभवशाली होना। आज विज्ञान एंव तकनीकी के आधार पर भैतिक समृद्धि होना ही सभ्यता के विकास का सूचक बन गया है। मानव के आन्तरिक जीवन का सन्तुलन बिगड़ गया है और फलत: शान्ति का अनुभव दुर्लभ हो गया है। जीवन में जीवन्तता विलुप्त् हो गयी है तथा जीवन दिशाहीन, भ्रमित और नीरस हो गया है। किसीभी प्रकार से धन कमाना, ऐश्वर्य सामग्री का संचय करना और ‘बड़ा आदमी’ बनकर समाज पर छा जाना मानों जीवन का लक्ष्य है। दिनचर्या में शान्ति के कुछ क्षण निकालकर चिन्तन करना मनुष्य की कल्पना से बाहर है। आज के मशीनी जीवन में चारों ओर जल्दबाजी, परस्पर गला काटकर आगे बढ़ने की होड़, भौतिक समृद्धि के लिए अन्धी दौड़, निरन्तर स्वार्थपूर्ण सकिगयता, भटकन, बेचैनी, दवाब और तनाव के कारण व्यक्ति अपने को अकेला मानकर दुखी और परेशान हो रहा है। इस सतही जीवन में विचार और कर्म का सामंजस्य लुप्त हो गया है।
आज मानव को सबसे बढ़कर शान्ति चाहिए जिससे वह जीवन की प्रतिष्ठा को समझकर जीवन का समादा कर सके तथा जीवन के सदुपयोग द्वारा जीवन को उदात, सौन्दर्यपूर्ण और आनन्दमय बना सके। मनुष्य तथा समाज के जीवन को शान्तिमय और सार्थक बनाने के लिए गहन चिन्तन की आवश्यकता स्पष्ट है। विचारपूर्ण चिन्तन का समावेश होने पर ही मनुष्य तथा समाज का जीवन आकर्षणपूर्ण एंव सुन्दर हो सकेगा। मन की भूमि पर वसन्त की प्रस्थापना होने पर बहिर्जगत् में भी वसत्न छा जायगा। आज भौतिक क्षेत्र में प्रगति के साथ ही मनुष्य के स्वार्थ, संकीर्णता, भोगलिप्सा, वैर और वैमनस्य का भी विस्तार हो गया है तथा जीवन-वाटिका मे असमय ही पतझड़ के घुस जाने से सारा संसार दुरुह एंव भ्यावह मरुस्थल प्रतीत होता है।
मनुष्य के चिन्तन का सीधा प्रभाव सर्वप्रथम मस्तिष्क तथा ह्रदय पर होता है। स्वस्थ चिन्तन से मस्तिष्क में ऊर्जा, उत्साह और उमंग उत्पन्न होते है। मनुष्य का मुखमंडल चमक उठता है और नेत्रों में उल्लास एंव जीवन्तता छलकने लगते हैं। इसके विपरित दूषित चिन्तन से मनुष्य के मस्तिष्क में ऊर्जा का क्षय होने लगता है, जीवन मे नीरसता आ जाती है, तनाव उत्पन्न हो जाता है, मुखमण्डल तेजहीन हो जाता है और नेत्रों में उदासी और निर्जीवता छा जाती है। यह दोषमय चिन्तन का ही परिणाम है कि अवसाद और अशान्ति संक्रामक रोग की भांति फैल रहे हैं तथा अगणित तरुणी और तरुण घर और परिवार मे सब सुख होते हुए भी असहाय-से होकर, मानसिक उच्चाटन और बेचैनी के कारण जीवन को क्लेशप्रद बोझ मानकर उतेजना के क्षणों में अपना प्राणान्त ही कर देते हैं तथा अपना उपवन स्वयं ही उजाड़कर परिवार और मित्रगण के लिए भी घोर दु:ख का कारण बन जाते हैं। वास्तव में दवाब (स्ट्रेस) तथा अवसाद (डिप्रेशन) कोई असाध्य रोग नहीं है बल्कि त्रुटिपूर्ण चिन्तन का सीधा दुष्परिणाम हैं जिन्हें विवेक द्वारा अवश्य ही सदा के लिए दूर किया जा सकता है। हमें अपने दु:ख, परेशानी और झुंझलाहट के कारणों को अपनी चिन्तन-शैली एंव जीवन-शैली में ही खोजकर धैर्यपूर्वक उनका उपाय करना चाहिए। हम प्राय: महत्वहीन बातों को महत्व देकर और महत्वपूर्ण बातों की उपेक्षा करके झंझट मोल ले लेते हैं। क्या हो गया और क्या होना चाहिए था, इस पर पछताते रहने के बजाए हम इस पर ध्यान दें कि हमें क्या बनना है और क्या करना है।

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